शनिवार, 22 अप्रैल 2023

खेती करते समय इन सब का ध्यान रखे

*खेती करते समय इन सब का ध्यान रखे*
 
1) फसल में *आयरन* होगा तो इल्ली नही आएगी 

2)फसल में *सल्फर* होगा तो फंगस नही लगेगा 

3)फसल में *जिंक* होगा तो कोई भी वायरस का प्रकोप नही होगा  

4)फसल में तांम्बा,*मैगनीज* होगा तो बैक्टीरियल ब्लास्ट जैसी बीमारी नही आएगी 

5)फसल में *कैल्सियम* होगा तो रसचुसक कीट नही आएंगे

6)वर्तमान में मिट्टी की ऊपरी सतह में उक्त खनिज तत्व नही है इसीलिए फसलों में बीमारियाँ आ रही है। खनिज तत्वों की कमी से फसल की उपज भी गिरती है,जैसे

  7)फसल में *बोरान कैल्सियम* नही होगा तो नई कोपलें नही आती और फूल नही आते है,फल फटते है।

 8)फसल में *फॉस्फोरस* नही होगा तो पत्ते टेढ़े-मेढ़े हो जाते है,फसल की ऊँचाई नही आती है।

9) फसल में *पोटास* नही होगा तो फसल में कंसे नही आते,फल कम लगते है,फल छोटे रह जाते है। 

10)फसल में *जिंक सल्फर* नही होगा तो फलो में स्वाद नही आता

प्लास्टिक कल्चर खेती कृषि के लिए एक वरदान

*प्लास्टिक कल्चर खेती कृषि के लिए एक वरदान।*🌾🎋

*किसान साथियों,*
कृषि में आये दिन नई तकनीकें आती है ऐसे ही एक और सस्ती और उत्पादन को बढ़ाने वाली तकनीक है "प्लास्टिक कल्चर तकनीक"
यह तकनीक सस्ती होने के साथ-साथ जैविक खेती को भी बढ़ावा देती है और फसलों  में इसके भरपूर फायदे मिलते है, जिससे उत्पादन में भी बढ़-चढ़कर मुनाफा प्राप्त होता है।  

 *"प्लास्टिक कल्चर तकनीक" के फायदे :-*
- प्लास्टिक मल्चिंग में ज्यादा समय तक नमी बनी रहती है, जिससे कम पानी में भी खेती संभव है।   
- उर्वरकों का उपयोग 40% तक कम किया जा सकता है। 
- खरपतवार और कीटों पर भी बेहतरीन नियंत्रण पाया जा सकता है। 
- सरकार से अच्छी सब्सिडी प्राप्त कर कम लागत में मल्चिंग और बूंद-बूंद सिंचाई का लाभ उठा सकते है। 
- इससे मिट्टी भुरभुरी और मुलायम रहती है तथा जड़ों के पास ऑक्सीजन का संचार अच्छा रहता है। 
- मल्चिंग से अधिकतम पानी बह जाता है जिससे पौधे में गिरने की समस्या नहीं रहती है। 
- मल्चिंग के निचे प्रकाश संश्लेषण जैसी महत्वपूर्ण क्रिया के लिए कार्बनडाई ऑक्साइड की भरपूर मात्रा मिलती है। 
- उपज की गुणवत्ता में सुधार आता है क्योंकि इसमे रोगों, कीटों और खरपतवार की समस्या कम आती है। 

*अधिक जानकारी के लिए हमारे कृषि विशेषज्ञों से संपर्क करें के बी बायो 📲 8356912057*

धन्यवाद।🎋🌾🙏🌷🌻🌞🌞🌞

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

लहसुन की उन्नत खेती

लहसुन की उन्नत खेती

लहसुन एक महत्त्वपूर्ण व पौष्टिक कंदीय सब्जी है। इस का प्रयोग आमतौर पर मसाले के रूप में कियाजाता है। लहसुन दूसरी कंदीय सब्जियों के मुकाबले अधिक पौष्टिक गुणों वाली सब्जी है। यह पेट के रोग, आँखों की जलन, कण के दर्द और गले की खराश वगैरह के इलाज में कारगर होता है। हरियाणा की जलवायु लहसुन की खेती हेतु अच्छी है।
उन्नत किस्में जी 1
– इस किस्म के लहसुन की गांठे सफेद, सुगठित व मध्यम के आकार की होती हैं। हर गांठ में 15-20 कलियाँ पाई जाती हैं। यह किस्म बिजाई के 160 – 180 दिनों में पक कर तैयार होती है। इस की पैदावार 40 से 45 क्विंटल प्रति एकड़ है।
एजी 17
- यह किस्म हरियाणा के लिए अधिक माकूल है। इस की गांठे सफेद व सुगठित होती है। गांठ का वजन 25-30 ग्राम होता है। हर गांठ में 15-20 कलियाँ पाई जाती हैं। यह किस्म बिजाई के 160-170 दिनों में पक कर तैयार होती है। पैदावार लगभग 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
मिट्टी और जलवायु
वैसे लहसुन की खेती कई किस्म की जमीन में की जा सकती है, फिर भी अच्छी जल निकास व्यवस्था वाली रेतीली दोमट मिट्टी जिस में जैविक पदार्थों की मात्रा अधिकं हो तथा जिस का पीएच मान 6 से 7 के बीच हो, इस के लिए सब से अच्छी हैं। लहसुन की अधिक उपज और गुणवत्ता  के लिए मध्यम ठंडी जलवायु अच्छी होती है।
खेती की तैयारी
खेत में 2 या 3 गहरी जुताई करें इस के बाद खेत को समतल कर के क्यारियाँ व सिंचाई की नालियाँ बना लें।
बिजाई का समय
लहसुन की बिजाई का सही समय सितंबर के आखिरी हफ्ते से अक्टूबर तक होता है।
बीज की मात्रा
लहसुन की अधिक उपज के लिए डेढ़ से 2 क्विंटल स्वस्थ कलियाँ प्रति एकड़ लगती हैं। कलियों का व्यास 8-10 मिली मीटर होना चाहिए।
बिजाई की विधि
बिजाई के लिए क्यारियों में कतारों दूरी 15 सेंटीमीटर व कतारों में कलियों का नुकीला भाग ऊपर की ओर होना चाहिए और बिजाई के बाद कलियों को 2 सेंटीमीटर मोटी मिट्टी की तह से ढक दें।
खाद व उर्वरक
खेत की तैयारी के समय 20 टन गोबर की सड़ी हुई खाद देने के अलावा 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश रोपाई से पहले आखिरी जुताई के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएँ। 20 किलोग्राम नाइट्रोजन बिजाई के 30-40 दिनों के बाद दें।
सिंचाई
लहसुन की गांठों के अच्छे विकास के लिए सर्दियों में 10-15 दिनों के अंतर पर और गर्मियों में 5-7 दिनों के अंतर पर सिंचाई होनी चाहिए।
अन्य कृषि क्रियाएँ व खरपतवार नियंत्रण
लहसुन की जड़ें कम गहराई तक जाती हैं। लिहाजा खरपतवार की रोकथाम हेतु 2-3 बार खुरपी से उथली निराई गुड़ाई करें। इस के अलावा फ्लूक्लोरालिन 400-500 ग्राम (बासालिन 45 फीसदी, 0.9-1.1 लीटर) का 250 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई से पहले छिड़काव करें या पेंडीमैथालीन 400-500 ग्राम (स्टोम्प 30 फीसदी, 1.3-1.7 लीटर) का 250 लीटर पानी में घोल बना कर बिजाई के 8-10 दिनों बाद जब पौधे सुव्यवस्थित हो जाएँ और खरपतवार निकलने लगे, तब प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
गांठो की खुदाई
फसल पकने के समय जमीन में अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए, वर्ना पत्तियाँ फिर से बढ़ने लगती हैं और कलियाँ का अंकुरण हो जाता है। इस से इस का भंडारण प्रभावित हो सकता है।
पौधों की पत्तियों में पीलापन आने व सूखना शुरू होने पर सिंचाई बंद कर दें। इस के कुछ दिनों बाद लहसुन की खुदाई करें। फिर गांठों को 3 से 4 दिनों तक छाया में सुखाने के बाद पत्तियों को 2-3 सेंटीमीटर छोड़ कर काट दें या 25-30 गांठों की पत्तियों को बांध कर गूछियों बना लें।
भंडारण
लहसुन का भंडारण गूच्छीयों के रूप में या टाट की बोरियों में या लकड़ी की पेटियों में रख कर सकते हैं। भंडारण कक्ष सूखा व हवादार होना चाहिए। शीतगृह में इस का भंडारण 0 से 0.2 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान व 65 से 75 फीसदी आर्द्रता पर 3-4 महीने तक कर सकते हैं।
पैदावार
इस की औसतन उपज 4-8 टन प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है।
बीमारियाँ व लक्षण
आमतौर पर लहसुन की फसल में बैगनी धब्बा का प्रकोप हो जाता है। इस के असर से पत्तियों परGarlicजामुनी या गहरे भूरे धब्बे बनने लगते हैं। इन धब्बों के ज्यादा फैलाव से पत्तियाँ नीचे गिरने लगती हैं। इस बीमारी का असर ज्यादा तापमान और ज्यादा आर्द्रता में बढ़ता जाता है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए इंडोफिल एम् 45 या कॉपर अक्सिक्लोराइड 400-500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से ले कर 200-500 लीटर पानी में घोल कर और किसी चपकने वाले पदार्थ (सैलवेट 99, 10 ग्राम, ट्रीटान 50 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर ) के साथ मिला कर 10-15 दिनों के अन्तराल पर छिड़कें।