शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

पोषक तत्वों की कमी की सटीक पहचान

पौधों में पोषण संबंधी कमियों को दूर करने में मृदा परीक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका को समझना किसानों और कृषि विज्ञानियों के लिए महत्वपूर्ण है। पौधों में पोषण संबंधी कमियों को दूर करने और फसल की पैदावार को अनुकूलित करने में मृदा परीक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका को समझकर, हम स्थायी कृषि पद्धतियों को सुनिश्चित करने में इसके महत्व को समझ सकते हैं:

1️⃣ पोषक तत्वों की कमी की सटीक पहचान

पोषक तत्वों की कमी के गलत दृश्य लक्षण, जैसे कि पत्तियों का पीला पड़ना या विकास रुक जाना, कभी-कभी गलत व्याख्या या कीट क्षति या जल तनाव जैसे अन्य मुद्दों के साथ भ्रम पैदा कर सकते हैं। मृदा परीक्षण मिट्टी में पोषक तत्वों के स्तर को सटीक रूप से पहचानने में सहायता करता है, जिससे सटीक निदान और लक्षित हस्तक्षेप की सुविधा मिलती है। उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन और सल्फर की कमी के बीच अंतर करना, जो अक्सर समान लक्षण प्रकट करते हैं, मृदा परीक्षणों के माध्यम से संभव हो जाता है।

2️⃣ उर्वरक अनुप्रयोगों में सटीकता

उचित मृदा परीक्षण के बिना, उर्वरकों का अनुप्रयोग सफल या असफल हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ पोषक तत्वों का अधिक उपयोग और अन्य का कम उपयोग हो सकता है। मृदा परीक्षण पोषक तत्वों के असंतुलन को प्रकट करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उर्वरकों का उचित दरों पर उपयोग किया जाए। यह न केवल कमियों को ठीक करता है, बल्कि इनपुट लागत को कम करते हुए पोषक तत्वों की विषाक्तता को भी रोकता है।

3️⃣ दीर्घकालिक मृदा क्षय को कम करना

मिट्टी की पोषक स्थिति की पूरी समझ के बिना लगातार फसल उगाने से महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की दीर्घकालिक कमी हो सकती है। नियमित मृदा परीक्षण समय के साथ पोषक तत्वों के रुझानों के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जिससे किसान कमियों के गंभीर होने से पहले सुधारात्मक उपाय कर सकते हैं। कई बढ़ते मौसमों में मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने से दीर्घकालिक उत्पादकता होती है।

4️⃣ विभिन्न फसलों के लिए अनुकूलित पोषक तत्व प्रबंधन

विभिन्न फसलों की पोषक तत्वों की अलग-अलग ज़रूरतें होती हैं, और मृदा परीक्षण पोषक तत्व प्रबंधन प्रथाओं को तदनुसार तैयार करने में सहायता करता है। विशिष्ट फसलों की पोषक तत्वों की ज़रूरतों को समझकर, किसान यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनकी फसलों को महत्वपूर्ण विकास चरणों में आवश्यक पोषक तत्व मिलें। उदाहरण के लिए, मृदा परीक्षण मक्का या सोयाबीन जैसी फसलों में जड़ विकास के लिए अतिरिक्त फॉस्फोरस की आवश्यकता को उजागर कर सकता है।

 5️⃣ मृदा परीक्षण के लिए सर्वोत्तम अभ्यास

कम से कम साल में एक बार या बढ़ते मौसमों के बीच किए जाने वाले नियमित मृदा परीक्षण, मृदा उर्वरता में होने वाले परिवर्तनों को ट्रैक करने की अनुमति देते हैं। मृदा परीक्षण को पौधे के ऊतकों के परीक्षण के साथ संयोजित करने से पोषक तत्वों की उपलब्धता और पौधे द्वारा ग्रहण की जाने वाली मात्रा की व्यापक समझ मिलती है। मृदा और पौधे के ऊतकों के परीक्षण के परिणामों के आधार पर, उर्वरकों और मृदा संशोधनों के उपयोग को विशेष रूप से पोषक तत्वों की कमी और असंतुलन को दूर करने के लिए तैयार किया जा सकता है।

निष्कर्ष रूप से, मृदा परीक्षण पौधों की पोषण संबंधी कमियों को दूर करने के लिए एक अपरिहार्य उपकरण है। पोषक तत्वों के प्रबंधन के लिए डेटा-संचालित दृष्टिकोण को अपनाने से बेहतर पैदावार, कम इनपुट लागत और अधिक टिकाऊ कृषि पद्धतियों में योगदान हो सकता है।

बुधवार, 21 अगस्त 2024

धान फसल में लाल कीड़ा (ब्लडवॉर्म)

धान फसल में लाल कीड़ा (ब्लडवॉर्म) 

धान की फसल में लाल कीड़े लगने से भारी नुकसान हो सकता है. ये कीड़े मिट्टी में रहते हैं और पौधों की जड़ों को काटकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं. इससे पौधों का विकास बाधित होता है और कुछ समय बाद वे सूख बीवीने लगते हैं. इन कीड़ों को बोलचाल की भाषा में झुलसा रोग भी कहा जाता है. 
इन कीड़ों से बचने के लिए, आप ये तरीके अपना सकते हैं: 
क्लोरोफ़ाइज़िफ़ास या प्लथसाइपरमेथ्रिन की 250 एमएल दवा को चार तसला रेत में मिलाकर छिड़काव करें. रेत जमीन में पहुंचने पर कीड़े मर जाएंगे. 
नर्सरी और रोपाई के समय ही खेत में ज़िक और अन्य पोषक तत्व डालें. इसके लिए मिट्टी की जांच कराकर पता करें कि आपके खेत में किस पोषक तत्व की कमी है. 5 फ़ीसदी ज़िक, 5 फ़ीसदी सल्फ़ेट, और 100 लीटर पानी में चुने का पानी मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें. 
धान में बालियां आने पर खेत में नमी बनाए रखें. हालांकि, ज़्यादा तापमान और नमी की वजह से कीट और रोग भी बढ़ सकते हैं. इनसे बचने के लिए, लाइट ट्रैप, बर्ड पर्चर, फ़ेरोमोन ट्रैप, ट्राइकोग्राम, और ट्राइकोडरमा का इस्तेमाल करें.

बुधवार, 24 जुलाई 2024

मैग्नीशियम के कार्य

मैग्नीशियम के कार्य

1. क्रोमोसोम, पोलीराइबोसोम तथा क्लोरोफिल का अनिवार्य अंग है।
2. पौधों के अन्दर कार्बोहाइड्रेट संचालन में  सहायक है।
3. पौधों में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा के निर्माण मे सहायक है।
4. चारे की फसलों के लिए महत्वपूर्ण है।

मैग्नीशियम-कमी के लक्षण
1. पत्तियाँ आकार में छोटी तथा ऊपर की ओर मुड़ी हुई दिखाई पड़ती हैं।
2. दलहनी फसलों में पत्तियो की मुख्य नसों के बीच की जगह का पीला पड़ना।

पोटैशियम-कमी के लक्षण

पोटैशियम-कमी के लक्षण
1. पत्तियाँ भूरी व धब्बेदार हो जाती हैं तथा समय से पहले गिर जाती हैं।
2. पत्तियों के किनारे व सिरे झुलसे दिखाई पड़ते हैं।
3. इसी कमी से मक्का के भुट्टे छोटे, नुकीले तथा किनारोंपर दाने कम पड़ते हैं। आलू में कन्द छोटे तथा जड़ों का  विकास कम हो जाता है
4. पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम तथा श्वसन की क्रिया अधिक होती है।

गन्धक (सल्फर) के कार्य

गन्धक (सल्फर) के कार्य

1. यह अमीनो अम्ल, प्रोटीन (सिसटीन व मैथिओनिन), वसा, तेल एव विटामिन्स के निर्माण में सहायक है।
2. विटामिन्स (थाइमीन व बायोटिन), ग्लूटेथियान एवं एन्जाइम 3ए22 के निर्माण में भी सहायक है। तिलहनी फसलों  में तेल की प्रतिशत मात्रा बढ़ाता है।
3. यह सरसों, प्याज व लहसुन की फसल के लिये आवश्यक है। तम्बाकू की पैदावार 15-30प्रतिशत तक बढ़ती है।

गन्धक-कमी के लक्षण
1. नई पत्तियों का पीला पड़ना व बाद में सफेद होना तने छोटे एवं पीले पड़ना।
2. मक्का, कपास, तोरिया, टमाटर व रिजका में तनों का लाल हो जाना।
3. ब्रेसिका जाति (सरसों) की पत्तियों का प्यालेनुमा हो जाना।

रविवार, 21 जुलाई 2024

सल्फर पोषक तत्व का परिचय

सल्फर पोषक तत्व का परिचय

सल्फर (S) एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है जो पौधों की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक द्वितीयक मैक्रोन्यूट्रिएंट, सल्फर पौधों में विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं के लिए अपरिहार्य है। आइए पौधों के पोषण में सल्फर के महत्व और यह कैसे मजबूत फसल वृद्धि में योगदान देता है, इस पर चर्चा करें:

1️⃣ पौधों में सल्फर की भूमिका

सल्फर अमीनो एसिड, प्रोटीन और एंजाइम का एक प्रमुख घटक है, जो पौधों के चयापचय और विकास के लिए आवश्यक हैं। यह क्लोरोफिल संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, प्रकाश संश्लेषण और ऊर्जा उत्पादन में सहायता करता है। सल्फर अन्य पोषक तत्वों, विशेष रूप से नाइट्रोजन की दक्षता को भी बढ़ाता है, जो समग्र पौधे के स्वास्थ्य और उत्पादकता में योगदान देता है।

2️⃣ मिट्टी में सल्फर पोषक तत्व की उपलब्धता

मिट्टी में सल्फर की उपलब्धता मिट्टी के पीएच, कार्बनिक पदार्थ की मात्रा और माइक्रोबियल गतिविधि जैसे कारकों पर निर्भर करती है। कम पीएच या अत्यधिक अम्लीय मिट्टी में, सल्फर की उपलब्धता सीमित हो सकती है।  कार्बनिक पदार्थ के अपघटन और सूक्ष्मजीवी गतिविधि से सल्फर ऐसे रूप में निकलता है जिसे पौधे ग्रहण कर सकते हैं, जिससे सल्फर की उपलब्धता के लिए ये कारक महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

3️⃣ सल्फर की उपलब्धता को अनुकूलित करने में मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ की भूमिका

मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ सल्फर के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के दौरान इसे धीरे-धीरे छोड़ते हैं। इससे पौधों को सल्फर की निरंतर आपूर्ति बनाए रखने में मदद मिलती है। फसल चक्रण, कवर क्रॉपिंग और कम्पोस्ट या खाद जैसे जैविक संशोधनों को शामिल करने जैसी प्रथाओं से मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ में वृद्धि हो सकती है, जिससे सल्फर की उपलब्धता और समग्र मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है।

4️⃣ सल्फर की कमी के लक्षण

पौधों में सल्फर की कमी से युवा पत्तियों का पीलापन (क्लोरोसिस) हो सकता है, जबकि नाइट्रोजन की कमी से पुरानी पत्तियां पहले प्रभावित होती हैं। विकास में रुकावट, परिपक्वता में देरी और कम उपज सल्फर की कमी के सामान्य लक्षण हैं। महत्वपूर्ण उपज हानि को रोकने और स्वस्थ फसल विकास सुनिश्चित करने के लिए समय पर पहचान और सुधार महत्वपूर्ण हैं।

 5️⃣ मिट्टी में सल्फर की खाद डालना

सल्फर की कमी को दूर करने के लिए, किसान और कृषिविज्ञानी अमोनियम सल्फेट, जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट) या एलिमेंटल सल्फर जैसे सल्फर युक्त उर्वरकों का इस्तेमाल कर सकते हैं। उचित अनुप्रयोग दर निर्धारित करने और संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए मिट्टी परीक्षण आवश्यक हैं। मिट्टी परीक्षण के परिणामों के आधार पर इन उर्वरकों को शामिल करने से सल्फर का स्तर बढ़ सकता है और पौधों की इष्टतम वृद्धि को बढ़ावा मिल सकता है।

निष्कर्ष में, पौधों के पोषण में सल्फर की भूमिका को समझना और मिट्टी में इसकी उपलब्धता का प्रबंधन करना स्वस्थ और उत्पादक फसल प्राप्त करने की कुंजी है। नियमित मिट्टी परीक्षण, उचित मिट्टी प्रबंधन और लक्षित उर्वरक किसानों और कृषिविदों को उच्च पैदावार और टिकाऊ कृषि के लिए सल्फर की पूरी क्षमता को अनलॉक करने में मदद कर सकते हैं। सल्फर पोषक तत्व उपयोग और मिट्टी परीक्षण को अनुकूलित करने पर व्यक्तिगत मार्गदर्शन के लिए, Khetimitra Apps पर हमारे विशेषज्ञों से बेझिझक संपर्क करें।

कम से अधिक उगाएँ

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गुरुवार, 18 जुलाई 2024

धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण

*धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण* 

खरीफ सीजन की सबसे मुख्य फसल धान है | देश में अधिकांश किसान अपने खेतों में धान की फसल या तो लगा चुके हैं या अभी लगा रहे हैं | धान की फसल में खरपतवार एक बहुत बड़ी समस्या है यदि समय पर इसका नियंत्रण नहीं किया गया तो फसल पूरी तरह से नष्ट हो जाती है। खरपतवार पैदावार में कमी के साथ धान में लगने वाले रोग के कारकों एवं कीटों को भी आश्रय देते हैं। धान की फसल में खरपतवार के कारण 15-85 प्रतिशत तक नुकसान होता है, कभी-कभी यह नुकसान 100 प्रतिशत तक पहुच जाता है, इसलिए सही समय पर खरपतवार नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है।

 *बुआई के 3 से 10 दिनों के अंदर इस तरह करें खरपतवार नियंत्रण* 

 1) *पायरेजोसल्फ़ुएरोन 10%* या *पायरेजोसल्फ़ुएरोन70%* का उपयोग करें।

2) *प्रेटिलाक्लोर + पायरेजोसल्फ़ुएरोन 800ग्राम*  प्रति एकड़ जो बाजार में इरोस गोल्ड के नाम से मिलता है उसको रेत के साथ मिलाकर छिड़काव करें।

3) *प्रेटिलाक्लोर 50%(rifit)* को भी 400 से 500 ml रेत में मिलाकर आप छिड़काव कर सकते है 

4) *पेनोक्सुलम + बुटाक्लोर* का 800 ml प्रति एकड़ रेत में मिलाकर उपयोग करें।

बुआई के 20-25 दिनों के बाद इस तरह करें खपतवार नियंत्रण

1) *बिसपायरिबैक सोडियम 10%* दवा का छिडकाव 100-150 एम.एल प्रति एकड़ की दर से करना चाहिए। इसके छिड़काव से सावा,मोथा,जंगली घास वा अन्य संकरी व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार का नियंत्रण होता है

2) नर्जा व चुहका के लिए *मेथसल्फ़ुरॉन मिथाइल 10% + क्लोरीम्यूरॉन एथिल 10% WP(ऑलमिक्स )* का 20 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें।

3) कोदीला के नियंत्रण के लिए *फेनोक्साप्रॉप-पी-एथिल 6.7%* का 200 से 250 ml प्रति एकड़ उपयोग करें

4)चौड़ी पत्ती के खरपतवार के लिए आप *2 4D 58%* का 200 ml प्रति एकड़ व *2 4D 95%*  500 ग्राम का उपयोग आप रेत के साथ करें।

 नोट - धान के खेत में पर्याप्त नमी न होने पर ही आप खरपतवारनाशी का छिड़काव न करें ।
नमी न होने पर धान में पीलापन या वह खराब भी हो सकता है।

अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें
गुरुदेव कृषि केंद्र
पोस्ट ऑफिस रोड डोंगरगांव
9993621356
9131990936

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

मूंग के प्रमुख कीट एवं रोकथाम

मूंग के प्रमुख कीट एवं रोकथाम – 

माहू – एनएसकेई 5 प्रतिशत (50 ग्राम/लीटर) या डाइमेथोएट 30 ईसी (2.0 मि.ली./लीटर) या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस.एल. (0.35 मिली प्रति लीटर) का फसल पर छिड़काव करें।

बिहार रोयेंदार सूँड़ी
यह कीट प्राय: झुंड में पौधों पर मिलता है। ऐसे पौधों को उखाड़कर झिल्ली (पोलीथीन) में बन्द करके नष्ट कर दें।

क्वीनालफॉस 25 ईसी (1.25 ग्राम प्रति लीटर पानी) से छिडकाव कर दें।

हरा फुदका या जैसिड
बुवाई की तिथि में परिवर्तन करके इस कीट के प्रकोप को कम किया जा सकता है।  

कीटनाशी जैसे डाइमेथोएट 30 ईसी का (2 मि.ली./लीटर पानी) का छिड़काव लाभदायक पाया गया है।

ब्लिस्टर बीटल
ऐसफेट 75 एस.पी. 1.0 ग्राम/लीटर या मेथोमाइल 40 एसपी 1-1.5 ग्राम/लीटर या क्यूनॉलफॉस 25 ईसी 2.0 मि.ली./लीटर की दर से फसल पर छिड़काव करें।

चित्तीदार सूँडी (मरूका विट्राटा)
गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें तथा कीड़े की सुषुप्ता अवस्था (प्यूपा) को नष्ट कर दें। खेत में प्रकाश प्रपंच/12ञ्च लगायें जिससे प्रौढ़ नाशीजीव आकर्षित हो तथा उनको नष्ट करें।

नवजात सूडियाँ सामूहिक अवस्था में पायी जाती है। अत: इन्हें नष्ट कर जला दें।

यदि इनका प्रकोप अधिक हो तो नीम आधारित एमामेक्टीन बेन्जोएट 5 एसजी /0.5 ग्रा./ली. अथवा इण्डोक्सोकार्व 14.5 एससी/ 0.8 मिली प्रति लीटर अथवा स्पीनोसैड 45 एस.सी. / 0.3 मिली/ली. पानी की दर से फसल पर छिड़काव करें।

फली बग
पौधों को झटककर झाडऩे से इस कीट का यांत्रिक प्रबंधन सम्भव है।

इमिडाक्लाप्रिड 17.8 एसएल/ 0.35 मिली/लीटर अथवा डाइमेथोएट 30 ईसी (2 मिली/लीटर पानी) का प्रयोग करें।

तना मक्खी
खेतों की साफ सफाई, निराई-गुडाई से इस कीट के नुकसान को कम करें।

अंकुरण की अवस्था में मक्खी बहुत अधिक प्रकोप करती है। बीज को ईमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल (ञ्च5.0 मिली/किलो बीज) या थायोमेथोक्सम 25 डब्ल्यूजी (ञ्च5.0 ग्राम प्रति किलो बीज) को 100 मिली पानी मे भिगोने से तना मक्खी द्वारा फसल की प्रारंभिक अवस्था में नुकसान रोका जा सकता है।

फसल की बुवाई के 15 दिनों में इमिडाक्लोप्रिड 17ण्8 एसएल (0.35 मिली प्रति लीटर पानी) की दर से अथवा थायोमेथोक्सम 25 डब्ल्यूजी ञ्च0.35 ग्रा. प्रति लीटर का छिड़काव करें।

पर्ण जीवक (थ्रिप्स)
फसल में समय पर सिंचाई (15 दिन के अंतराल पर) इस कीट की संख्या की बढवार को रोकती है। थायोमेथोक्सम 70 डब्ल्यूएस (ञ्च5.0 ग्राम/ किलो बीज) से बीजोपचार करें।

इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल. (0.35 मिली प्रति लीटर पानी) की दर से अथवा थायोमेथोक्सम 25 डब्ल्यूजी ञ्च035 ग्रा. प्रति लीटर पानी अथवा स्पीनोसैड 45 एससी 0.35 मिली प्रति लीटर पानी छिड़कें।

सफेद मक्खी
खेत एवं आस पास की मेडोंए पानी की नालियों इत्यादि में खरपतवारों का उचित प्रबंधन करें क्योंकि खरपतवार इस कीट के विकल्पी पोषक होते हैं।

थायोमेथोक्सम 70 डब्ल्यूएस (ञ्च5.0 ग्राम प्रति किलो बीज) से बीजोपचार करें।

डाइमोथोएट 30 ईसी. 1-7 मिली/ लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़कने से कीट के प्रकोप को कम किया जा सकता है।
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