गुरुवार, 21 अगस्त 2025

यूरिया की जगह करें अमोनियम सल्फेट का प्रयोग

कृषि वैज्ञानिक की यही सलाह-
यूरिया की जगह करें अमोनियम सल्फेट का प्रयोग

1. यूरिया की एक बोरी में 20.7 किलो नाइट्रोजन पायी जाती है परन्तु केवल 20-25% प्रयोग के कारण इसका केवल 4-5 किलो नाइट्रोजन प्रयोग होता है।

2. यूरिया में नाइट्रोजन एमाइड फार्मेट में आता है। इसके उपयोग के बाद 3 से 7 दिन में यह नाइट्रेट में परिवर्तित हो जाता है।

3. खेत में केवल 20-30% तक ही उपयोग होती है बाकी जल व वायु में मिल जाती है।

4. सल्फर की मात्रा शून्य है।

5. एक एकड़ में एक बोरी डाली जाती है तथा 5 किलो अतिरिक्त सल्फर का व्यय जोड कर प्रति एकड़ लागत लगभग 615/-आती है।

6. वातावरण को अत्यधिक प्रदूषित करता है।

7. लगातार प्रयोग से खेत की उत्पादकता कम होती है।

🌾अमोनियम सल्फेट:- ✅

1. अमोनियम सल्फेट में 10.5 किलो नाइट्रोजन व सल्फर 11.5 किलो पाया जाता है। इसका 80-90% प्रयोग के कारण 8.5-9 किलो नाइट्रोजन प्रयोग होता है।

2. अमोनियम सल्फेट में नाइट्रोजन अमोनियम फार्मेट में आता है जिससे यह खेत में धीरे-2 घुलता है और 30-40 दिन तक इसकी नाइट्रोजन कार्य करती है।

3. खेत में 80-90% तक उपयोग होती है। जिससे ज्यादा दिन तक फसल की नाइट्रोजन की पूर्ति होती है।

4. 11.5 किलो सल्फर की वजह से अतिरिक्त सल्फर नहीं डालना पड़ता।

5. प्रति एकड़ 25 किलो का प्रयोग होता है जिसकी लागत 475/- है।

6. वातावरण में प्रदूषण नहीं फैलाता।

7. अमोनियम सल्फेट के प्रयोग से उत्पादकता में 20-25% की बढ़ोत्तरी होती है।

किसान भाइयों से यही निवेदन है कि यदि यूरिया खाद मिल नहीं रही तो आप अमोनियम सल्फेट अपनी फसल में बढ़ोत्तरी व वातावरण शुद्ध रखने के लिए यूरिया के स्थान पर प्रति एकड़ 25 से 50 किलो अमोनियम सल्फेट प्रयोग करें। इससे आपकी उत्पादकता बढ़ेगी एवं आपको यह यूरिया से कम लागत में भी पड़ेगा। और यूरिया का बेस्ट ऑप्शन है.!!
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रामचंद देवांगन 
गांव देवरी पोस्ट डोंगरगांव जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़ 

बुधवार, 20 अगस्त 2025

मक्का और कवक रोग

मक्का और कवक रोग

मक्का को सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाले कवकों को मोटे तौर पर तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
* तना सड़न
* जड़ सड़न
* वायु सड़न

**कवक के आक्रमण के कारण:**
* मक्के की लगातार खेती (एकल फसल)
* बहुत शुष्क मौसम
* अत्यधिक आर्द्र, नम मौसम
* अत्यधिक पानी/सिंचाई
* तने के आसपास जलभराव
* गर्म मौसम और लगातार गीली मिट्टी
* मिट्टी में कवक की उपस्थिति
* उच्च पादप जनसंख्या घनत्व

**पौधे पर लक्षण:**
* तने का लाल होना
* निचली पत्तियों का सूखना
* जड़ों का रंग उड़ना
* हमले के बाद तने का सड़ना और सड़ना
* तने के भीतर कीटों/छेदकों का दिखना

मक्के के जिन पौधों पर शुरुआती दिनों में तना छेदक कीटों का आक्रमण हुआ है, वे अधिक संवेदनशील होते हैं और इस कवक संक्रमण के शुरुआती बिंदु बन जाते हैं।

यह कवकीय आक्रमण आमतौर पर छोटे-छोटे क्षेत्रों में होता है, जो जल की कमी (कमी या अधिकता) या खरपतवारों के उच्च घनत्व वाले क्षेत्रों से शुरू होता है और फिर पूरे खेत में फैल जाता है।

मक्के पर कवकीय आक्रमण आमतौर पर बुवाई के लगभग 30 दिन बाद शुरू होता है और टैसलिंग अवस्था के आसपास स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है।

**जैविक नियंत्रण:**
* फसल चक्र अपनाएँ।
* *ट्राइकोडर्मा*, जो एक लाभकारी कवक है, का प्रयोग करें।

**रासायनिक नियंत्रण (उगने के 30 दिन बाद):**

* **विकल्प 1:** कॉपर ऑक्सीक्लोराइड + कासुगामाइसिन
* मात्रा: 1 लीटर या 750 ग्राम
* प्रयोग: मिट्टी को गीला करें (पौधों के आधार पर लगाएँ)।

* **विकल्प 2:** थियोफैनेट-मिथाइल
* प्रयोग: छिड़काव।

दोनों नियंत्रण विधियों का प्रयोग करना उचित है। केवल एक विधि पर निर्भर रहने से 100% नियंत्रण प्राप्त करने की संभावना कम हो सकती है।

एक बार जब मक्के पर फफूंद स्पष्ट रूप से फैल जाए, तो नियंत्रण उपाय इसके आगे के प्रसार को कुछ हद तक ही सीमित कर सकते हैं; संक्रमित पौधे ठीक नहीं हो पाएँगे। इसलिए, बेहतर होगा कि **रोपण के 30 दिन बाद इस नियंत्रण उपाय का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाए।**

**यह रासायनिक नियंत्रण निम्नलिखित के लिए अनिवार्य है:**
* जिन खेतों में लगातार मक्के की खेती की जाती है।
* जिन खेतों में पिछली मक्के की फसल पर इस फफूंद का हमला हुआ था।

पहली बार मक्के की खेती करने वाले किसान एहतियात के तौर पर इस नियंत्रण उपाय का प्रयोग कर सकते हैं। अन्यथा, यदि फफूंद का हमला टैसेलिंग के बाद दिखाई देता है, तो उन्हें इन नियंत्रण उपायों का प्रयोग करना चाहिए।