शनिवार, 25 दिसंबर 2021

गन्ने की खेती में कब क्या करे

गन्ने  की खेती में कब क्या करे
जनवरी :-

1. पाले से बचाव हेतु खड़ी फसल में आवश्यकतानुसार सिचाई करे |
2. शरदकालीन गन्ने के साथ ली गई विभिन्न अन्तह फसलो जैसे सरसों, तोरिया ,मसूर , आलू , धनिया ,लहसुन,मैथी , गेंदा प्याज तथा गेहू आदि आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई , कीट प्रबंधन एवं संतुलित उर्वेरको का प्रयोग करे |
3. बसंतकालीन बुवाई की तैयारी शुरू कर दे इस हेतु मरदा परिक्षण कराकर ही उर्वरको का प्रयोग करे |
4. बसंतकालीन बुवाई हेतु कुल क्षेत्रफल का १/३ भाग शीघ्र पकने वाली प्रजातियो के अंतर्गत रखे साथ ही बुवाई हेतु स्वस्थ बीजो का चयन कर उसका विशेष प्रबंध करें |
5 .गन्ने से खाली हुए खेत की तैयारी कर पशुओ के लिए चारे की फसल एवं सब्जियों की खेती करें |
6. अगेती पोधे की फसल की कटाई तापमान यदि काफी कम हो तो न करें इससे पैडी गन्ने में फुटाव उत्तम नहीं होगा |

फरवरी :-

1. पोधे गन्ने की कटाई जमीन से सटाकर करें जिससे फुटाव अच्छा होगा |
2. यथा संभव पोगले न छोड़ें इससे पैडी प्रबंध में कठिनाई होगी साथ ही उत्पादन अपेछित नहीं होगा |
3. शरदकालीन गन्ने में सिचाई एवं निराई , गुड़ाई तथा खरपतवार का नियंत्रण करें |
4. गन्ना बीज जिन खेतों में रोकना हो उसमें सिचाई आदि का विशेष धयान रखें , बुवाई पूर्व बीज नर्सरी में यूरिया के प्रयोग से फुटाव अच्छा होता है |
5. पैडी गन्ने की देखभाल करें, खाली जगह पर गैप फिलिंग करें तथा सिचाई व गुड़ाई के बाद एन पी के आदि उर्वरको का प्रयोग करें |
6. कुल रकवे के अनुसार प्रजातीय संतुलन को धयान में रखकर बुवाई करें |
7. गन्ना बीज उपचार हेतु पारा युक्त रसायन एग्लाल ३ % (५६० ग्राम) एरितान ६% (२८० ग्राम) या एम् ई एम् सी ६% (२८० ग्राम) या बाविस्टीन ११० ग्राम को घोलकर टुकड़ो को उपचारित करें |
8. बुवाई के समय दीमक व अंकुर बेधक के नियंत्रण हेतु फोरेट -१० जी २५ किलोग्राम या सेविडाल ४:४ जी २५ किलोग्राम या किलोरोपरिफोस -२० ई सी ५ लीटर /हैक्टयेर की दर से प्रयोग करें |
9. गन्ने की बुवाई के समय सुछम पोषक तत्वों (जिंक सल्फेट सुपर सुगर कैन स्पेशल आदि २५ किलोग्राम /है ० की दर से ) का भी प्रयोग करें |

मार्च :-

1. अच्छी उपज के लिए उत्तम प्रजातियो एवं बुवाई की नई तकनीको यथा ट्रेंच पद्धति का प्रयोग करें |
2. सफ़ेद गिडार के नियंत्रण हेतु बुवाई के समय बबरिया वेसियाना एवं मेटारैजियम ५ किलो०/है ० की दर से ६०:४० के अनुपात में प्रयोग करें |
3. आय को बढाने तथा संशाधनो के समुचित प्रयोग हेतु गन्ने के साथ साथ उड़द मूंग , फ्रास बीन मक्का आदि फासले लें |
4. सह फसल में उर्वरको की अति रिक्त मात्रा का प्रयोग करें |
5 . शरदकालीन गन्ने में यदि फ़रवरी माह में यूरिया की टॉप ड्रेसिंग न की तो मार्च में सिचाई के पश्चात १३२ किलो ग्राम यूरिया/है ० की दर से टॉप ड्रेसिंग करें |
6. बावग गन्ने की कटाई उपरांत खेत में मेंड़ जोतने के बाद ठूठों की छटाई पंक्तियों के दोनों तरफ गुड़ाई एवं रिक्त स्थानों में पूर्व अंकुरित पोंधो से भराई करें |
7. ऐसीटोंबेकटर एवं पी एस बी ५ किलो ग्राम /है ० की दर से प्रथम सिचाई के उपरांत पोंधो के कूंड बनाकर डालना चाहिए या बुवाई के समय प्रयोग करें |
8. कंडुआ रोग दिखाई देने पर पोंधो को नस्ट कर दें |
9. चोटी बेधक के अंड समूह को एकत्रित कर नस्ट कर दें |
10. बसंतकालीन गन्ने में खरपतवार नियंत्रण हेतु २ किलोग्राम ऐतरा जीन सक्रिय तत्व पानी में घोल बनाकर बुवाई के तुरंत बाद छिडकाव करें |

अप्रैल :-

1. गन्ने के अच्छे फुटाव के लिए गुड़ाई कर कूंड बनाकर यूरिया खाद की दूसरी मात्रा का प्रयोग करें |
2. शरदकालीन गन्ने के साथ अन्तं: फसल की कटाई यदि हो गई हो टों सिचाई करें एवं उर्वरक की शेष मात्रा कूंड बनाकर डाल दें |
3. यदि गेंहू के बाद गन्ने की बुवाई कर रहें हैं तो लाइन से लाइन की दूरी घटाकर ६५ से ० मी ० कर लें तथा बीज की मात्रा भी बढाकर प्रयोग करें जिससे खेत में पोंधों की संख्या उचित मात्रा में रहें |
4. इसी माह में पायरीला का प्रकोप हो सकता है यदि मित्र कीट (अंड परजीवी ) इपीरिकीनिया मिलेनोल्युका यदि खेत में है तो कीट नाशी का प्रयोग न करें बल्कि सिचाई कर हलकी यूरिया का प्रयोग करें |

मई :-

1. सूखे से बचाने हेतु आवश्यकता नुसार सिचाई करते रहें |

2. इस माह में अगेती चोटी बेधक के नियंत्रण हेतु सिचाई करते रहें साथ ही सेवीडॉल ४:४ जी फोरेट -१० जी फ़रतेरा या कार्ताफ २५ किलो ग्राम / है ० या क्लोरोप्यरीफोस २० ई सी १ लीटर ७०० लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें जब अंडे एवं पतंगे दिखाई पड़े |
3. अगेती चोटी बेधक हेतु त्रैकोकार्ड ४ /है ० की दर से प्रयोग करें |
4. फसल की अच्छी बडवार कीट नियंत्रण एवं पोषक तत्वों की कमी हेतु यूरिया मैक्रोन्यूट्रीएंट का २ % घोल एवं कीटनाशक रसायन जैसे एन्डोसल्फान मेटासिड या क्लोरोप्यरीफोस २० ई सी का १ % घोल का छिडकाव करें |
5. यदि बसंतकालीन बुवाई के समय खरपतवार नियंत्रण हेतु ऐतराजीन का प्रयोग किया है तो इस माह २-४ डी १ किलोग्राम सक्रिय तत्व छिडकाव करें |

जून :-

1.उर्वरक की शेष मात्रा इस माह अवश्य पूर्ण कर ले |

2.गुड़ाई पूर्ण करने के पश्यात मिट्टी चढाई का कार्य अवश्य करें |

3.खरपतवार नियंत्रण हेतु निराई करे | यदि देर से अर्थात अप्रैल में बुबाई के समय अत्रजिन का उपयोग किया है तो इस माह मे खरपतवार नियंत्रण हेतु 2 , 4 डी० 1 KG सक्रिय तत्व 500 -600 ली० पानी मे घोल बना कर छिडकाव करें |

जुलाई :-

1.गन्ने के जिन खेतों का ब्यात पूरा हो चूका है उनमें मिट्टी चढ़ा दे |
2 . चोटी बेधक का मादा तिल्ली जुलाई माह में पत्तियों की निचली सतह पर समूह में अण्डे देती है |
अण्डे वाली पत्तियों को नस्ट कर दे तथा कार्बोफुरान ३ जी० 25 किo/ हैo की दर से अवश्य प्रयोग करें |
3. चोटी बेधक के नियंत्रण हेतु त्र्य्कोकार्ड 4 . / है० की दर से प्रयोग करें |
4 . गुरदासपुर बेधक के नियंत्रण हेतु सूखे अगोले को काटकर जमीन मे दबा दें तथा क्लोरोपाएरिफास 20 ई० सी० / ली० प्रति है० की दर से छिडकाव करें |
5 . जल निकास का उचित प्रबंधन करें |
6 . बर्षा के दिनों में पर्याप्त बर्षा न होने पर 8 - 10 दिन के अन्तेराल पर सिचाई करते रहें |
7 . सूखे से बचने जल के समुचित उपयोग एवं बिजली की कमी से निपटने के लिए ड्रिप सिचाई प्रयोग करें |
8 . सफेद गिडार के नियंत्रण हेतु लाइट ट्रैप या पोधो पर कीटनाशी छिडकाव कर नियंत्रण करें |
9 . शरद कालीन गन्ने को गिरने से बचाने के लिए बंधाई अवश्य करें |

अगस्त :-

1.गुरदासपुर बेधक एवं सफेद मक्खी का प्रभावी नियंत्रण हेतु जल निकास की व्यवस्था करें तथा मनोक्रोतोफास 36 ई० सी० या क्लिरोपरिफास 20 ई० सी० 1 - 1 .5 ली० प्रति है० की दर से छिडकाव करें | 2.गन्ने की दुसरी बधाई अवश्य करें | 3.अगस्त माह मे गन्ने पर चड़ने वाले खरपतवार यथा आइपोमिया प्रजाति (बेल) की बडवार होती है , जिसे खेत से उखाड़कर फेक दे | अथवा मेट सल्फुरान मिथाइल ( ऍम० एस० ऍम० ) 4 ग्राम / है० की दर से 500 -600 ली० पानी मे घोल बना कर जब इसमें छोटे पोधे खेत मे दिखाई पड़े प्रयोग करना चहिये |

सितम्बर :- 

1 गन्नेे की तृतीय एवं बधाई का कार्य पूर्ण कर ले |
2 शरद कालीन बुवाई हेतु खेत की तैयारी शुरू कर दे |
3 पायरीला का परकोप अधीक होने पर क्लोरोपय्रीफास 20 इ० सी ० / ली ० या मोनोकोटोफास 36 इ ० सी ० , 10 - 15 ली ० / है ० की दर से पर्योग करे |

अक्टूबर : -

1 शरद कालीन बुवाई प्रारंभ कर दे , वेगयानीक बुवाई वीधी या ट्रेंच वीधी का पर्योग करे |
2 यथा संभव गन्ने की लाइने पूरब से पश्चिम की ओर होनी चाहीये|
3 लाइन से लाइन की दूरी 90 सेमी ० रखे |
4 गन्ना बीज की पारायुक्त रसायन से अवश्य उपचारित करे |
5 आय बढ़ाने हेतु शरद कालीन बुवाई में सहफसली पद्दती को अवश्य अपनाये |

नवम्बर :- 

1 फसल की अच्छी बढवार के लीए 12 - 15 दीन के अन्तराल पर सीचाई करे |
2 अच्छी पैडी लेने के लीए गन्ने की कटाई सतह से करे ताकि फुटाव अचछा हो |
3 मील को गन्ना नीरधारीत कलेंडर अनुसार पर्ची प्रापत होने पर कटाई कर आपूर्ति करे |
4 अगेती प्रजाती का पैडी गन्ना चीनी मील को साफ सुथरी स्थीती में आपूर्ती करे |
5 गन्ना संबंधी कीसी भी कठीनाई पर सम्बंधित समिति , चीनी मील एवं जीला गन्ना अधीकारी से संपर्क करे |
6 समिति कर्ज की कटोती पूर्ण करने हेतु कर्जे की पर्ची प्रापत कर गन्ने की आपूर्ती प्राथमिकता पर करे |
7 कर्जे की कटोती से सम्बन्ध में सम्बंधित समिति से संपर्क करे |
दिसम्बर :- 

1 अंत में फसल में नीराई गुड़ाई करे |
2 आवश्यकतानुसार सीचाई करते रहे |
3 पैडी फसल काटने के बाद यदी गेहू की बुवाई करना चाहते है तो गेहू की पछेती कीश्मो का चुनाव करे |
4 खेतो में जीवांश खाद्य गोबर , कम्पोस्ट , मैली को डालकर फैला कर जुताई कर दे |
5 पाले से फसल को बचाने के लीए सीचाई करे |

मिटटी जनित रोग मिटाने वाली फसल-"ज्वार"

मिटटी जनित रोग मिटाने वाली फसल-"ज्वार"

जुवार किसी समय मालवा व निमाड़ क्षेत्र की प्रमुख फसल थी। आदिवासी क्षेत्रों में इसे जुवार माता के नाम से जाना जाता था। मालवा व निमाड़ को जुवार-कपास क्षेत्र (कॉटन-ज्वार झोन) के नाम से संबोधित किया जाता था। परंतु इसका क्षेत्रफल नगण्य हो गया है। अब यह फसल गरीबों के निर्वाह का साधन न रहकर अमीरों के शौक में शामिल हो गई है। जुवार खासकर मोटे दाने वाली जुवार का भाव आजकल खेरची में 1200 से 1500 रुपए क्विं. के बीच चल रहा है।5-6दशक पहले के कृषि वैज्ञानिक और अनुभवी कृषक जानते हैं कि जुवारNDउगाए जाने वाले क्षेत्रों के खेतों की मिट्टी में अब की अपेक्षा भूमिजनित रोग बहुत कम होते थे। जुवार को अकेली (एकल फसल) या कपास, तुवर, मूँग, उड़द, मूँगफली के साथ विभिन्न कतार अनुपात में मुख्य या सहायक अंतरवर्ती फसल के रूप में शामिल करके बोया जाता रहा था।जुवार की देशी किस्मों के पौधे लंबे, अधिकऊँचाई वाले, गोल या अंडाकार गूज नेक (बगुले या हंस की गर्दन के समान झुके हुए)भुट्टों वाले होते थे। इनमें दाने बिलकुलसटे हुए लगते थे। जुवार की उज्जैन 3, उज्जैन 6, पीला आँवला, लवकुश, विदिशा 60-1 मुख्य प्रचलित किस्में थीं। इनकी उपज 12 से 16 क्विंटल दाना और 30 से 40 क्विंटल कड़वी (पशु चारा) प्रति एकड़ तक मिलजाती थी। इनका दाना मीठा, स्वादिष्ट होता था।चूँकि ये किस्में कम पानी व अपेक्षाकृत हल्की जमीनों में हो जाने के कारण आदिवासी क्षेत्रों की प्रमुख फसल थी। ये उनके जीवन निर्वाह का प्रमुख साधन था। साथ ही इससे उनके पशुओं को चारा भी मिल जाता था। इनके झुके हुए ठोस भुटटों पर पक्षियों के बैठने की जगह न होने के कारण नुकसान कम होता था।इसके बाद आई जुवार की खुले भुट्टे वाली अधिक उपज देने वाली संकर किस्में।जुवार के नगण्य क्षेत्रफल और अच्छे भावों को दृष्टिगत रखते हुए अगर कुछ किसान मिलकर अपने पास-पास लगे हुए खेतोंमें इस फसल को उगाकर अधिक लाभ उठा सकते हैं। क्योंकि इसके दाने और कड़वी दोनों ही उचित मूल्य पर बिक सकते हैं      इनके आने से जुवार की विपुल पैदावार मिलने, बाजार में माँग से अधिक पूर्ति के कारण भाव गिरकर 70 रु. प्रति क्विंटल तक आ गए। सरकार द्वारा दिए गए समर्थित मूल्य भी पूरी तरह खरीदी न होने के कारण सहारा नदे सके। इसी समय आई सोयाबीन। इसकी अधिक उपज, नई फसल होने के कारण कीड़ों व रोगों का कम प्रकोप, विदेशी मुद्रा कमाने वाली फसल होने के कारण सरकार का पूर्ण समर्थन, पर्याप्त अनुसंधान इन सब कारणों से जुवारकी जमीन छिन गई।इन 50-60 वर्षों में सोयाबीन ने सरकार व कृषक को पैसा तो दिलवाया परंतु सुनियोजितखेती के तरीकों व सिद्धांतों के अभाव में अब मिट्टी की उर्वरता व स्वास्थ्य पर इसके दुःष्प्रभाव परिलक्षित होने लगे हैं। अनेक खेतों में राइजोक्टोनिया, फ्यूजेरियम, स्क्लेरोशियम प्रजाति के पौध रोग व पौध अवशेषों में सोयाबीन की गर्डल बीटल आर्मी वर्म जैसे कीड़ों ने अपना स्थाई निवास बना लिया है। ये रोग व कीड़े बहुआश्रयी होने के कारण अनेक वर्ग की फसलों और सब्जियों को नुकसान पहुँचातेहैं। आपने खेत में फसल या सब्जियाँ लगाई नहीं कि इनकी पहले से तैयार फौज टूट पड़ती है उन पर।जुवार के नगण्य क्षेत्रफल और अच्छे भावोंको दृष्टिगत रखते हुए अगर कुछ किसान मिलकर अपने पास-पास लगे हुए खेतों में इस फसल को उगाकर अधिक लाभ उठा सकते हैं। क्योंकि इसके दाने और कड़वी दोनों ही उचित मूल्य पर बिक सकते हैं। इसके अलावा यदि आपके खेत की मिट्टी में उपरोक्त रोग लगते हैं तो जुवार को फसल क्रम में शामिल करके उन्हें नियंत्रित किया जा सकता है।मध्यप्रदेश के लिए जुवार की समर्थित संकरकिस्में सीएसएच5, सीएसएच9, सीएसएच-14, सीएसएच-18 है। इनके अलावा विपुल उत्पादनदेने वाली उन्नत किस्में (जिनका बीज हर साल नया नहीं बदलना पड़ता है) हैं- जवाहर जुवार 741, जवाहर जुवार 938, जवाहर जुवार 1041 एसपीवी 1022 और एएसआर-1 (यहअगिया प्रभावित क्षेत्रों के लिए समर्थित हैं)। इनके बीजों के लिए जुवार अनुसंधान परियोजना, कृषि महाविद्यालय इंदौर से संपर्क कर सकते हैं। एक हैक्टेयर (ढाई एकड़) में बोने के लिए 10-12 किलोग्राम बीज लगता है।बोने के पहले इसे 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडि (प्रोटेक्ट) नामक जैविक फफूँदनाशक से प्रति एक किलोग्राम बीज के साथ मिलाकर उपचारित कर लें। इसे 45 सेमी दूरी पर कतारों में बोएँ। बोते समय ही 40किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा स्फुर व 40 किग्रा पोटाश मिलाकर दुफन-तिफन या बीज-उर्वरक बोवाई यंत्र से बीज की कतारोंके नीचे बोएँ। बीज अंकुरित होने व पौधे जमजाने पर कतारों के अंदर दो पौधों के बीच 10-12 सेमी की दूरी रखकर बीच के कमजोर पौधे निकाल दें। 40 किग्रा नत्रजन की दूसरी मात्रा बोने के 25-30 दिन बाद खड़ी फसल की कतारों के बीच यूरिया के रूप में डालकर गुड़ाई द्वारा मिला दें।खरपतवार नियंत्रण के लिए डोरा चलाएँ :इसेसोयाबीन तुवर, कपास आदि की मुख्य फसल के साथ सहायक अंतरवर्ती फसल के रूप में भी लिया जा सकता है। दलहन फसलों में कतार अनुपात 4:2 या 6:2 उपयुक्त पाया गया है। यानी प्रत्येक 4 या 6 कतार तुवर के बाद दो कतारें जुवार की बोएँ। जुवार की संकर किस्मों से 25-30 क्विंटल दाना और 80-90 क्विंटल चारा तथा उन्नत किस्मों से 22-25 क्विंटल दाना व 100-120 क्विंटल चारा मिल जाता है।

सोमवार, 20 दिसंबर 2021

सामान्य मेथी की उन्नत उत्पादन तकनीक

सामान्य मेथी की उन्नत उत्पादन तकनीक

मेथी का वानस्पतिक नाम ट्राइगोनेला फोइनमग्रेसियम एवं एक और वर्ग कस्तूरी मेथी का है जिसका वानस्पतिकनाम ट्राइगोनेला कार्निकुलाटा है। मेथी की खेती मुख्यतः सब्जियों, दानो (मसालों) एवं कुछ स्थानो पर चारो के लिये किया जाताहै। मेथी के सूखे दानो का उपयोग मसाले के रूप मे, सब्जियो के छौकने व बघारने, अचारो मे एवं दवाइयो के निर्माण मे किया जाता है। इसकी भाजी अत्यंत गुणकारी है जिसकी तुलना काड लीवर आयल से की जाती है।इसके बीज में डायोस्जेनिंग नामक स्टेरायड के कारण फार्मास्यूटिकल उधोग में इसकी मांग रहती है। इसका उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में किया जाता है। इस लेख मे सामान्य मेथी की उन्नत उत्पादन तकनीक का वर्णन किया जा रहा है।जलवायु:मेथी शरदकालीन फसल है तथा इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है। इसकी वानस्पतिक वृद्धि के लिए लम्बे ठंडे मौसम, आर्द्र जलवायु तथा कम तापमान उपयुक्त रहता है। फूल बनते समय या दाने बनते समय वायु में अधिक नमी और बादल छाये रहने पर बीमारी तथाकीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है। फसल पकने के समय ठण्डा एवं शुष्क मौसम उपज के लिये लाभप्रद होता है। मेथी अन्य फसलो की तुलना मे अधिक पाला सहनशील होता है।भूमि एवं भूमि की तैयारी:दोमट या बलुर्इ दोमट मृदा, जिसमें कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में हो एवं उचित जल निकास क्षमता हो इसकी सफल खेती के लिये उत्तम मानी जाती है। खेत साफस्वच्छ एवं भुरभुरा तैयार होना चाहिए अन्यथा अंकुरण प्रभावित होता है। खेत की अंतिम जुतार्इ्के समय क्लोरपाइरीफास 20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए, जिससे भूमिगत कीड़ों एवं दीमक से बचाव हो सके। जुतार्इ के बाद पाटा अवश्य चलाना चाहिये ताकि नमी संरंक्षित रह सके।उन्नतशील किस्में:इसकी किस्मो मे लाम सेलेक्शन-1, गुजरात मेथी-2, आर.एम.टी.-1, राजेन्द्र क्रांति, हिसार सोनाली, कोयंबटूर-1 आदि प्रमुख उन्नतशील किस्में हैं।बीज दर एवं बीजोपचार:इसकी 20-25 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर लगता है। बीज को बोने के पूर्व फफूँदनाशी दवा (कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज) से उपचारित किया जावे। बीज का उपचार राइजोबियम मेलोलेटी कल्चर 5 ग्राम/किलो बीज के हिसाब से करने से भी लाभ मिलता है।बुवार्इ का समय एवं तरीका:मैदानी इलाको मे फसल की बुवार्इ के लिए मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक का समय एवं पर्वतीय क्षेत्रो मे मार्च-अप्रेल सर्वोत्तम रहता है। देरी से बुंवार्इ करने पर उपज कम प्राप्त होती है। अधिक उत्पादन के लिये इसकी बुंवार्इ पंकितयो मे 25 से.मी. कतार से कतार दूरी पर 10 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी के हिसाब से करते हैं। बीज की गहरार्इ 5 से.मी से ज्यादा नहीं होना चाहिए।खाद एवं उर्वरक:मृदा जांच के आधार पर खाद व उर्वरक का उपयोग करना लाभकारी रहता है। यदि किसी कारणवश मृदा जांच ना हो पाया हो तो निम्न मात्रा मे खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करना चाहिये। गोबर या कम्पोस्ट खाद (10-15 टन/हे.) खेत की तैयारी के समय देवें। चूंकि यह दलहनी फसल है इसलिये इसका जड़ नाइट्रोजन सिथरीकरण का कार्य करता है अत: फसल को कम नाइट्रोजन देने की आवश्यकता पड़ती है। रासायनिक खाद के रूप मे 20-25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 20-30 कि.ग्रा. पोटाश/हे. बीज बुंवार्इ के समय ही कतारों में दिया जाना चाहिये। यदि किसान उर्वरको की इस मात्रा को यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट एवं म्यूरेट आफ पोटाश के माध्यम से देना चाहता है तो 1 बोरी यूरिया, 5 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट एवं 1 बोरी म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है।सिंचार्इ एवं जल निकास:मेथी के उचित अंकुरण के लिये मृदा मे पर्याप्त नमी का होना बहुत जरूरी है। खेत मे नमी की कमी होने पर हल्की सिंचार्इ करना चाहिये। भूमि प्रकार के अनुसार 10-15 दिनों के अंतर से सिंचार्इ करें। खेत में अनावश्यक पानी के जमा होने से फसलपीला होकर मरने लगता है अत: अतिरिक्त पानीकी निकासी का प्रबंध करना चाहिये।पौध संरक्षण:खरपतवार नियंत्रण:बोनी के 15 एवं 40 दिन बाद हाथ से निंदार्इ कर खेत खरपतवार रहित रखें। रासायनिक विधि में पेण्डीमेथिलिन 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व बुवार्इ के पहले खेत में डाल देना चाहिए।रोग एवं कीट नियंत्रण:जड़ गलन रोग के बचाव के लिए जैविक फफूँदनाशी ट्राइकोडर्मा से बीज उपचार एवं मृदा उपचार करना चाहिए। फसल-चक्र अपनाना चाहिए। भभूतिया या चूर्णिल आसिता रोग के लिए कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत एवं घुलनशील गंधक की 0.2 प्रतिशत मात्रा का छिड़काव करना चाहिए। माहो कीट का प्रकोप दिखार्इ देने पर 0.2 प्रतिशत डाइमेथोएट (रोगार) या इमिडाक्लोप्रिड 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें एवं खेत में दीमक का प्रकोप दिखार्इ देने पर क्लोरपायरीफास 4 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचार्इ के पानी के साथ खेत में उपयोग करे।कटार्इ एवं गहार्इ:मेथी की कटाई इसके किस्मो एवं उपयोग मे लाये जाने वाले भाग पर निर्भर करता है। सब्जियो के लिये पहली कटाई मेथी पत्ती की हरी अवस्था मे बंवाई के लगभग 4 सप्ताह बाद चालू हो जाती है। पौधे को भूमि सतह के पास से काटते है। सामान्यतः 4-5 कटाई नियमित अंतराल पर ली जाती है। दानो के लिये इसकी कटाई जब फसल पीली पड़ने लगे तथा अधिकांश पत्तियाँ ऊपरी पत्तियों को छोड़कर गिर जायें एवं फलियो का रंग पीला पड़ जाये तो फसल की कटाई करनी चाहिए क्योकि सही अवस्था मे कटाई ना करने से फलियो से दानो का झड़ना प्रारंभ हो जाता है। कटाई के बाद पौधो को बंडलो मे बांधकर 1 सप्ताह के लिये छाया मेसुखाया जाता है सूखाने के बाद बंडलो को पक्के फर्श या तिरपाल पर रखकर लकडि़यो की सहायता से पीटा जाता है जिससे दाने फलियो से बाहर आ जाता है। इस काम के लिये थ्रेसर का उपयोग भी किया जा सकता है। दानो को साफ करने के बाद बोरियो मे भरकर नमी रहित हवादार कमरो मे भंडारित करना चाहिये।उपज:इसकी उपज भी किस्मो एवं उपयोग मे लाये जाने वाले भाग पर निर्भर करता है। यदि उन्नत किस्मो एवं सही समय पर उचित शस्य क्रियाओ को अपनाया जाये तो 50-70 किंवटल हरी पत्तियां सब्जी के लिये एवं 15-20 किंवटल दाने मसालो एवं अन्य उपयोगो के लिये प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाते है।

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

सूत्रकृमि (निमाटोड)

बैंगन की जड़ों में गांठें पड़ जाती हैं। रोकथाम के उपाय बतायें।

समाधान- बैंगन की जड़ों में गांठें सूत्रकृमि (निमाटोड) के प्रकोप के  कारण पड़ती हैं।

- सूत्रकृमि का पौधे में प्रवेश मिट्टी के माध्यम से होता है, और पौधे में परजीवी के रूप में रहता है। इसके प्रकोप के कारण पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनकी उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। इसका प्रकोप बैंगन कुल की अन्य फसलों जैसे टमाटर, मिर्च इत्यादि में भी होता है। इसके प्रकोप को नियंत्रित करने के लिये निम्न उपाय अपनायें।
- गर्मी में गहरी जुताई कर सूर्य का ताप लगने दें इससे इसकी विभिन्न अवस्थायें नष्ट हो जायेगी।
- फसल चक्र अपनाये- एक-दो वर्ष तक वही फसलें लें जिसमें इसका प्रकोप नहीं होता है जैसे गेंदा, मैथी, जीरा, धनिया, गेहूं, जौ आदि।
- ग्रसित खेतों का पानी दूसरे खेतों में न जाने दें। 
ग्रसित खेत में उपयोग किये गये औजारों को अच्छी तरह धो लें।
- भूरेलाल जाटव, बारां (राज.)

https://www.krishakjagat.org/Article2638/बैंगन-की-जड़ों-में-गांठें-पड़-जाती-हैं

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

powdery mildew

What are the causes of powdery mildew?

powdery mildew, plant disease of worldwide occurrence that causes a powdery growth on the surface of leaves, buds, young shoots, fruits, and flowers. Powdery mildew is caused by many specialized races of fungal species in the genera Erysiphe, Microsphaera, Phyllactinia, Podosphaera, Sphaerotheca, and Uncinula.

How do you treat powdery mildew?

Powdery mildew fungicide: Use sulfur-containing organic fungicides as both preventive and treatment for existing infections. Trim or prune: Remove the affected leaves, stems, buds, fruit or vegetables from the plant and discard. Some perennials can be cut down to the ground and new growth will emerge.

Read more - https://lifeandagri.com/powdery-mildew/

गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

WHITEFLY

WHITEFLY

Whitefly (Bemisia tabaci) is a plant sap-feeding insect which belongs to the order Homoptera, is a global pest causing significant loss to a wide variety of agricultural commodities. Whiteflies are not true flies. It is related to aphids, scales, and mealybugs. Whiteflies cause damage to plants in two ways. Such as by sucking the sap and transmitting viral disease. Furthermore, they secrete honeydew onto leaves where black sooty mold can grow. They have become one of the most severe crop protection problems.

Whitefly Life Cycle

At 70ºF, the greenhouse whitefly life cycle takes: 6-10 days for egg hatch, 3-4 days as a nymph I, 4-5 days as nymph II, 4-5 days as nymph III, 6-10 days for the pupa. Adults can live for 30 to 40 days.

Whiteflies have a characteristic life cycle with six stages: the egg, four immature stages (nymphal instars), and the adult stage. The main factors that significantly influence the life cycle of whitefly species are temperature, relative humidity, and host plants. Whiteflies usually lay their tiny eggs on the undersides and upper side of leaves. Then eggs hatch. Hatching occurs after 5 – 9 days at 30°C. Then young whiteflies gradually increase in size through four nymphal stages called instars.

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