सोमवार, 22 मार्च 2021

टमाटर की खेती

टमाटर की खेती
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खेत की तैयारी
खेत की चार-पांच बार जुताई करने के पश्चात पाटा चलाकर भूमि को नरम, भुरभुरी एवं समतल कर लेना चाहिये. भूमि को तैयार करते समय 15-20 टन प्रति हेक्टेयर गोबर या कम्पोस्ट की पकी हुई खाद का प्रयोग करना चाहिये.
किस्मे
सिंजेंटा इंडिया- अभिनव, टीएच-1387, टीओ 848
इंडो अमेरिकन- नवीन-2000, इंडम-2014, 2103, सोनाली, रश्मी, रूपाली, वैशाली
जे.के. सीड्स- जे.के.टी.एच. 2040, 195, 895, रामया, रोहिणी, आशा.
अंकुर सीड्स- 308, एआरटीएच-210, 164, प्रवीण
नुनहेम्स सीड्स- 7712, अनंत, रेड समर, अवतार, यार्क, 1001, 5005(लक्ष्मी).
नामधारी सीड्स- एनएस 816, 101, 112, 815, 812, 2535, 531, उत्सव, अंकुश
सेमिनिज सीड्स- चिरंजीवी, सोसा, लिटो, निधि, कृष्णा, डान्या
बेजो शीतल- टॉलस्टॉय, रॉनको, उर्वशी
सनग्रो सीड्स- अर्जुन, कृष्णा, कर्ण, एल सी-1, रक्षा-108
बीजाई का तरीका व समय
1) पौध रोपाई के लिये 3 X 1 मीटर की क्यारी बनाएँ.
2) पौधे से पौधे की दूरी 45-60 सेमी और कतार से कतार की दूरी 75-90 सेमी रखे.
3) पौध रोपाई शाम के समय करे इससे पौध नुकसान कम होता हैं.
4) पौध रोपाई से पूर्व 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा को 50 किलो सड़ी गोबर खाद में मिलाकर डालने से फ़्यूजेरियम विल्ट रोग से बचाव किया जा सकता है.
5) पौधे की रोपाई करने के पूर्व पौधों को मैन्कोजेब का 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का घोल बनाकर 5-6 मिनट डूबाकर खेत में रोपाई करनी चाहिये. 
बीज उपचार
बुवाई से पहले बीज को 1 ग्राम कारबेंडाजिम प्रति किलो बीज से उपचारित करें. रसायनिक उपचार के बाद बीज को 5 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किलो की दर से उपचारित कर छाया में सुखाकर रोपाई करें.
नर्सरी प्रबंधन
1) क्यारियों की लंबाई 3 मी., चौड़ाई 1 मी. एवं ऊंचाई 10-15 से.मी. होनी चाहिये.
2) दो नर्सरी क्यारियों के बीच की दूरी 75-90 से.मी. होनी चाहिये, ताकि नर्सरी के अंदर निराई, गुड़ाई एवं सिंचाई जैसी अंतरशस्य क्रियाएं आसानी से की जा सके.
3) नर्सरी क्यारियों की सतह चिकनी (भुरभुरी) अच्छी तहर से समतल, ऊंची एवं उचित जल निकास वाली होनी चाहिये.
4) अंकुरण के बाद पौध को कीट से बचाव हेतु फोरेट 10-15 ग्राम प्रति 10 वर्गमीटर पर कतारो के मध्य डालकर हल्की सिंचाई करें.
बीज दर
एक एकड़ भूमि के लिये 100 से 120 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है.
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार जमीन से पोषक तत्व ले कर उपज में कमी कर देते हैं. और ये कीट व बीमारियों को बड़ावा भी देते हैं. खरपतवार के नियंत्रण के लिए फसल मे 2-3 निराई गुड़ाई ज़रूरी है. पहली निराई पौध रोपाई के 45 दिन बाद करने से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है. संपूर्ण नियंत्रण करने के लिये मल्च जैसे पैरा, लकड़ी का बुरादा और काले रंग का पॉलीथीन का उपयोग किया जाता है. इसके साथ ही मल्च भूमि में नमी का संरक्षण करके उत्पादन व गुणवत्ता को बढ़ता है.
रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु 400मि.ली पेंडिमेथलिन (स्टोम्प/दोस्त) / एकड़ छिड़के. इन्हें खरपतवार भूमि मे बाहर निकलने से पहले छिड़कें. 200 लीटर पानी/ एकड़ प्रयोग करें व खरपतवारनाशकों को फ्लैट फैन नोज़ल या फ़्लड जेट नोज़ल से छिड़कें.
शस्य क्रियाएं
निराई गुड़ाई
प्रायः निराई एवं गुडाई कतारो के मध्य ही की जाती है. खेत में बड़े खरपतवार उग आने पर उन्हें हाथों से उखाड़कर अलग कर देना चाहिये. तापमान बदलने से उपज प्रभावित होती है. लगातार फल प्राप्ति हेतु 10 ग्राम पैरा-क्लोरो फिनोक्सी एसिटिक एसिड(PCPA)/ 200 लीटर पानी मे घोलकर फूल आते समय छिड़के.
सहारा देना
यह अंतरशस्य क्रिया, पौधे की रोपाई के 2-3 सप्ताह के अंतराल से की जाती है.
पौधे को निश्चित समय पर सहारा देने से अधिक उत्पादन एवं उत्तम गुणवत्ता वाले फल प्राप्त होते है .
असीमित वृद्धि वाली फसल के लिये कतार के समानांतर बांस की खूटी को गाड़कर उसमें दो या तीन तार को खींचकर बाँध दिया जाता है. इन तारों पर पौधों को सुतली या रस्सी के सहारे बाँध दिया जाता है.
खाद एवं उर्वरक
जैविक खाद
बुवाई से पहले 7-10 टन अच्छी तरह सड़ा गोबर या 8-10 टन केंचुआ खाद प्रति एकड़ डालें. उकठा रोग रोकने हेतु 2 किलो ट्राइकोडर्मा 100 किलो गोबर की सड़ी खाद प्रति एकड़ से दोनों को मिलाकर खेत मे बिखेरकर जुताई करते समय मिलाएँ. सूत्रकृमि व दूसरे कीट की रोकथाम के लिए जिनका बरसात के समय ज्यादा प्रकोप होता हैं. 40 किलो नीम केक प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय डालें.
रसायनिक खाद
टमाटर के लिये अनुमोदित मात्रा 175 किलो यूरिया, 250 किलो एस एस पी और 68 किलो पोटाश प्रति एकड़. 88 किलो यूरिया और फोस्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय डालें. और आधी बची यूरिया तीन भागो में 20 दिन के अंतराल पर डालें.
फर्टिगेशन
1) पौध रोपाई करते समय 1.5 किलो एन. पी. के. (19:19:19) प्रति एकड़ प्रति दिन 10 दिन तक डालें.
2) फूल बनने से फल बनने तक 400 ग्राम एन.पी.के. (12:61:00) प्रति एकड़ प्रति दिन 10 दिन तक डालें.
घुलनशील खाद
1) खाद प्रबंधन- रोपाई के 10-15 दिन बाद एन.पी.के. (19:19:19) के साथ सूक्ष्म पोषक तत्व @ 2.5 से 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में छिड़कें.
2) पौध रोपाई के 40-45 दिन बाद 1 ग्राम बोरॉन 20% प्रति लीटर की दर से छिड़कें.
3) फल की अच्छी गुणवत्ता और उपज हेतु 10 ग्राम घुलनशील खाद (12:61:00) प्रति लीटर पानी से फूल आने से पहले छिड़कें.
4) फसल के फूल अवस्था पर 4-5 ग्राम एन.पी.के. (00:52:34) + 11 ग्राम बोरॉन प्रति लीटर पानी से छिड़कें.
5) फसल के फल अवस्था पर 4-5 ग्राम एन.पी.के. (00:52:34) + 1 बोरॉन @ 1ग्राम प्रति लीटर पानी से छिड़कें.
6) छोटे/ज़्यादा जड़ों वाली पौध लेने हेतु 4-5 पत्ती वाली अवस्था मे क्लोरोमेकुएट (लिहोसिन) @ 1ml/ Ltr के साथ छिड़के. इससे फूल जल्दी व फल ज़्यादा आएंगे
7) स्वस्थ पौध व रोपाई के झटके से बचाव हेतु 1ml विपुल बूस्टर/ लीटर पानी के हिसाब से छिड़कें और रोपाई से 1 सप्ताह पहले पानी न लगाएँ.
पोषक तत्वों की कमी के लक्षण व नियंत्रण
नाइट्रोजन की कमी पहले पुराने और नीचे के पत्तोँ पर नज़र आती है. पत्ते नोक से नीचे की तरफ पीले पड़ते हुए आगे की तरफ को पीले होते है. इसकी पूर्ति हेतु यूरिया के 2 किलो घोल को प्रति एकड़ की दर से 150 लीटर पानी के साथ मिलकर छिड़कें.
बोरॉन की कमी से किनारे के पत्ते टूट जाते है, पत्ते के किनारे पीले पड़ जाते है, पत्ते मोटे व भुरे हो जाते है, फल बेढँगे और उन पर धारियाँ पड़ जाती है. बोरॉन की कमी ठीक करने के लिए 125-150 ग्राम चीलेटिड बोरॉन (सोल्यूबर) 150 लीटर पानी के साथ या 0.2% बोरिक ऐसिड (200 ग्राम 100 लीटर पानी में) छिड़के.
कैल्शियम की कमी से नये तने, फली के डंठल व पत्ते मुरझा जाते है. इसकी पूर्ति हेतु 125-150 ग्राम EDTA केल्शियम / एकड़ / 150 लीटर पानी के साथ (1 ग्राम/ लीटर पानी) छिड़कें.
पोटाशियम की कमी से पौधा तो ठीक लगता है पर पत्ते के किनारे सूखने शरू हो जाते है और पत्ते पर लाल भूरे धबबे पड़ जाते है. पोटेशियम की कमी की पूर्ति के लिए 100 ग्राम 13:0:45 (मल्टी-के) प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़कें और बाद में 50 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ डालें.
फास्फोरस की कमी के लक्षण हैं बौने व पतले पौधे. पत्ते बिना चमक के, हल्के हरे रंग के. पुराने पत्ते मुरझाकर जल्दी गिर जाते हैं. इसे रोकने हेतु खाद की अनुमोदित मात्रा डालें, साथ में 4 किलो आंतरिक व बाह्य माइकोराइज़ा (रेलीगोल्ड/ ग्रोमोर) / एकड़ की दर से खेत तैयार करते वक़्त डालें. यदि खड़ी फसल में लक्षण नज़र आएं तो 100 ग्राम NPK (12-61-0) 15 लीटर पानी की दर से हफ्ते के अंतर पर 2 बार छिड़कें. ज़रूरत महसूस हो तो तीसरा छिड़काव करें.
मैंगनीज़ की कमी की पहचान हैं- पत्तों की नसों के बीच में हल्के पीले सलेटी रंग के धब्बे, जो बाद में बड़े होकर मिल जाते हैं और ज़्यादा कमी आने पर पौधा सूख जाता है. 1 किलो मैंगनीज़ सल्फेट 200 लीटर पानी में घोलकर एक छिड़काव पहले पानी से 2-4 दिन पहले करें और 3 छिड़काव हफ्ते-हफ्ते के अंतर पर धूप निकलने पर करें.
ग्रोथ रेगुलेटर
उपज बढ़ाने हेतु 50 मि.ली प्लेनोफ़िक्स/ एकड़ /100 लीटर पानी (2.5 मि.ली /10 लीटर पानी) की दर से छिड़कें. इससे फूल आते समय फूलों का गिरना कम होता है व फलियों की संख्या बढ़ती है. इसकी अधिक मात्रा बिलकुल न छिड़कें.
फूलो की संख्या बढाने और अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु 500 मिली समुद्री शैवाल (बायोविटा/ बायोजाइम/ धनजाइम) /150 लीटर पानी/ एकड छिडकें. पौध को स्वस्थ व मजबूत करने हेतु जिससे रोपाई अच्छे से की जा सके, लिहोसिन @ 1 मिली प्रति लीटर बुवाई के 20 दिन बाद छिड़कें.
सिंचाई
सिंचाई सारणी
फसल मे प्रायः 8-12 दिनों के अंतराल से सिंचाई की जाती है.
ग्रीष्म ऋतु में फसल को 5-6 दिनों के अंतराल से सिंचाई की आवश्यक होती है.
प्रायः सिंचाई हेतु खुली नाली (ओपन फरो) विधि का प्रयोग किया जाता है.
ड्रिप एवं टपका विधि का उपयोग प्रायः ग्रीनहाऊस, कांचघर या प्लास्टिक हाऊस में किया जाता है.
सिंचाई की क्रांतिक अवस्था
फूल व फल बनने के समय सिंचाई करना जरूरी होता है.
कीट प्रबंधन
पत्ती का सुरंगी कीट
पत्तों का सुरंगी कीट पत्तियों मे चाँदी रंग की सुरंगे बनाकर उनके अंदर पत्ती खाता है. अधिक प्रकोप से विकास रुकता है व उपज घट जाती है. सुरंगी कीट एवं थ्रिप्स के प्रकोप से उपज का नुकसान रोकने हेतु लेंबडा साईहेलोथ्रिन (चार्ज/ कराटे/ मेटाडोर) 15 मिली/ 15 लीटर पानी का छिड़काव करें.
इस कीट के द्वारा हानि रोपाई के तुरन्त बाद से लेकर अंतिम तुड़ाई तक होती है. वयस्क मादा मक्खी पत्तियों की निचली सतह पर कलियों एवं फलों पर अडे़ देती है. बाद की अवस्था में इल्ली फलों में छेद कर प्रवेश करती है और गूदे को खा जाती है.
नियंत्रण- सड़े और संक्रमित फलों को नष्ट करें. फल छेदक के नियंत्रण हेतु रोपाई से 20 दिन पहले फेरोमोन ट्रेप 16 प्रति एकड़ बराबर की दूरी पर लगाए. यदि कीट संख्या अधिक हो तो स्पाइनोसेड़ (सक्सेस/ ट्रेसर) @ 6 मिली + चिपचिपा पदार्थ @ 5 मिली प्रति 10 लीटर पानी और 200 मि.ली इंडोक्साकार्ब 14.5 एस. सी. (अवांट/ फिगो) प्रति एकड़ प्रति 200 लीटर पानी में छिड़कें.
 माहू
शिशु एवं वयस्को का समूह पत्तियों की निचली सतह पर चिपके हुये होते है, जो इनके ऊतको से रस चूसते है.
ग्रसित भाग पीले होकर सिकुड़कर मुड़ जाते है. अत्यधिक आक्रमण की अवस्था में पत्तियाँ सूख जाती है व धीरे-धीरे पौधा सूख जाता है.
ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिये ताकि यह कीट फैलने न पाये.
250 मि.ली साईपरमैथ्रिन 10 ई.सी.( साईपरवीर) और 40 मिली इमिड़ाक्लोप्रिड 17.8 SL (कोन्फ़िडोर/ टाटामिडा) और 40ग्राम थायोमेथोक्सम 25 डबल्यूजी (एक्टारा/ अनंत/ अरेवा) प्रति एकड़/ 150 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.
 सफ़ेद मक्खी
सफ़ेद मक्खी से वाइरस रोग फैलता है और फसल को अधिक हानि पहुंचाता है. शुरुआती नियंत्रण के लिए संक्रमित पौधो को उखाड़कर खेत से हटाये. रसायनिक नियंत्रण के लिए 6 ग्राम एसिटामिप्रिड़ 20 एसपी (प्राइड) प्रति 15 लीटर और 15 मिली डाईफेंथ्रियूरोन 50 डबल्यूपी (पेगासास/ पोलो) प्रति 15 लीटर पानी की दर से छिड़कें.
थ्रिप्स
थ्रिप पीला, भूरा बारीक पंखों वाला छोटा कीड़ा है. थ्रिप्स की रोकथाम हेतु 250 मिली साईपरमैथ्रिन 10 ईसी (साईपरवीर) और 40 मिली इमिड़ाक्लोप्रिड 17.8 SL (कोन्फ़िडोर, टाटामिडा) और 40 ग्राम थायोमेथोक्सम 25 डबल्यूजी (एक्टारा/ अनंत/ अरेवा) प्रति एकड़/ 150 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.
लाल मकड़ी
लार्वा शिशु एवं वयस्क पत्तियों को निचली सतह को फाड़ कर खाते है.
शिशु एवं वयस्क दोनों पत्तियों व टहनीयो के कोशिका रस को चूसते है, जिसके पत्तियों व लताओं पर सफेद रंग धब्बे विकसित हो जाते है.
ग्रसित पत्तियाँ पीले रंग की हो जाती है बाद में गिर जाती है.
अत्यधिक संक्रमण की अवस्था में पत्तियों की निचली सतह पर जालनुमा संरचना तैयार करके उन्हे हानि पहुंचाती है.
उपाय- 100 मिली स्पाइरोमेसिफेन (ओबेरॉन) और 160 मिली फेंजाक्विन10% (मेजिस्टर/ डी ई 436) प्रति एकड़/ 150 लीटर पानी मे छिड़कें.
सूत्रककृमि
सूत्रकृमि के प्रकोप से पौधा अविकसित रह जाता है. जड़ें छोटी रह जाती है जिससे उत्पादन प्रभावित होता है.
नियंत्रण के लिये गर्मियों मे गहरी जुताई करे, प्रतिरोधी किस्म का चयन करें. रसायनिक नियंत्रण प्रकोप के अधार पर 10-15 किलो कार्बोफ्यूरान प्रति एकड़ का प्रयोग करे.
रोग नियंत्रण
आर्द्रगलन
अक्सर फंगस का आक्रमण अंकुरित बीजों के द्वारा शुरू होता है, जो धीरे-धीरे मूलांकुर द्वारा फैलकर तनों के निचले भागों एवं विकसित हो रही जड़ों पर होता है. इससे संक्रमित पौधों के तनों के निचले भाग पर हल्के - हरे, भूरे एवं पानी के रंग के जले हुये धब्बे दिखाई देते है.
आद्रगलन रोग के बचाव हेतु बीज को 3 ग्राम कार्बेंडाज़िम 50% (बाविस्टीन/ ज़ूम) प्रति किलो से उपचारित करें और जैविक नियंत्रण हेतु ट्राईकोडर्मा विरडी @ 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें. 1.5 ग्राम थायोफेनेट मिथाईल या 3 ग्राम मेंकोजेब (एम-45) या 3 ग्राम रिडोमिल प्रति लीटर पानी के हिसाब से गीला करें. प्रति एकड़ 200 लीटर पानी का प्रयोग करे.
पछेती अंगमारी
यह रोग पौधे की पत्तियों पर किसी भी अवस्था में होता है. भूरे एवं काले बैगनी धब्बे पर्णवृन्त, डंढल, फल और तने के किसी भी भाग पर उत्पन्न हो सकते है. आक्रमण के अंतिम अवस्था में पौधा मर जाता है. यह रोग कम तापमान एवं अत्यधिक नमी होने पर पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देता है.
नियंत्रण- बादल छाए रहने पर इसका प्रकोप बढ़ता हैं. 25 ग्राम क्लोरोथेलोनिल (कवच/ जटायु) प्रति 10 लीटर पानी से और 2.5 ग्राम मेंकोजेब (एम-45) प्रति लीटर और 2.5 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (ब्लू कॉपर/ ब्लाइटॉक्स) प्रति लीटर पानी की दर से छिड़कें.
अगेती अंगमारी
फंगस का पत्तियों पर आक्रमण होने पर धब्बों का निर्माण होने लगता है. उत्पन्न धब्बे छोटे, हल्के-भूरे रंग के एवं पूरी पत्तियों पर फैले हुये होते है. पूर्ण विकसित धब्बे अनियमित, समकेन्द्रीय भूरे, काले रंग के एवं 2-5 मिमी आकार के होते है. पौधों में इस रोग के लक्षण नीचे की पत्तियों से शुरू होकर धीरे-धीरे ऊपर की तरफ बढ़ते है.
400-500 ग्राम प्रोपिनेब 70% (एंट्राकॉल/फेबकोल) प्रति एकड़ से 180 लीटर पानी से और 3 ग्राम साइमोक्सेनिल + मेंकोजेब (कर्जेट/ मोक्सिमेट) प्रति लीटर और 2.5 ग्राम मेटालेक्सिल-एम (रिडोमिल गोल्ड) और 2.5 ग्राम मेंकोजेब/ लीटर पानी की दर से छिड़कें.
जीवाणु उकठा
रोगग्रस्त पौधों की पत्तियां पीले रंग की होकर सूखने लगती है एवं कुछ समय पश्चात पौधा सूख जाता है. नीचे की पत्तियां पौधे के सूखने से पहले गिर जाती है. पौधे का संवहन तंत्र धीरे धीरे भूरे रंग का हो जाता है. पौधे के तने के नीचे के भाग को काटने पर उसमें से जीवाणु द्रव दिखाई देता है. पौधों के तनों से अत्याधिक जड़े निकलने लगती है .
नियंत्रण- कद्दू वर्गीय सब्जियों, गेंदा या धान की फसल का फसल चक्र अपनायें. 1.5 ग्राम थाओफनेट मिथाईल या 3 ग्राम मेंकोजेब (एम-45) या 3 ग्राम रिडोमिल प्रति लीटर पानी के हिसाब से भिगोयें. प्रति एकड़ 200 लीटर पानी का प्रयोग करे और 180 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड + 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन/ 15 लीटर पानी से 30 दिन के अंतराल पर छिड़के.

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