परवल की खेती
जलवायु :-
परवल को गर्म और आर्द्र जल वायु कि आवश्यकता होती है पहले इसे प.बंगाल , बिहार और उ.प्र.के पूर्वी जिलों में उगाया जाता था किन्तु अब इसे नई विधियाँ अपनाकर हर सिंचित क्षेत्र में सुगमता से उगाया जा सकता है परवल कि खेती उन सभी क्षेत्रों में सुगमता पूर्वक कि जा सकती है जहाँ पर औसत वार्षिक वर्षा १००-१५० से.मी,तक होती है ।
भूमि का चुनाव :-
इसे भारी भूमि छोड़कर किसी भी भूमि में उगाया जा सकता है किन्तु उचित जल निकास वाली जीवांशयुक्त रेतीली या दोमट भूमि इसके लिए सर्वोत्तम मानी गई है चूँकि इसकी लताएँ पानी के रुकाव को सहन नही कर पाती है अत: उचे स्थानों पर जहाँ जल निकास कि उचित व्यवस्था हो वहीँ पर इसकी खेती करनी चाहिए ।
भूमि कि तैयारी :-
यदि इसे उची जमीन में लगाना है तो २-३ जुताइयाँ देशी हल से करके उसके बाद पाटा लगा देना चाहिए १.५ मी.पौधे सेपौधे कि दुरी रखकर ३० गुणा ३० से.मी लम्बा, चौड़ा और ३० से.मी.गहरा गड्डा खोद लेना चाहिए अत: मिटटी में ४-५ किलो ग्राम गोबर कि खाद मिलाकर भर देना चाहिए ।
बुवाई /पौध रोपण :-
परवल कि अधिक उपज लेने के लिए उसकी समय पर बुवाई या रोपाई करना अत्यंत आवश्यक है परवल कि बुवाई साल में दो बार कि जाती है तथा जून के दुसरे पखवाड़े में और अगस्त के दुसरे पखवाड़े में ।
नदियों के किनारे दियारा भूमि में परवल कि रोपाई अक्टूबर से नवम्बर माह में कि जाती है ।
परवल को अधिकतर तने के टुकड़ों को रोपकर उगाया जाता है परन्तु जनवरी से जुलाई तक इसे बीज द्वारा उगाया जा सकता है इसमें /हे.२० से२५ किलो ग्राम बीज कि आवश्यकता होती है बीज से तैयार होने वाले पौधे में नर पौधों कि संख्या अधिक होती है दुसरे बीज से घटिया किस्म के पौधे तैयार होते है और कम पैदावार मिलती है ।
तने द्वारा सिचाई सुविधा उपलब्ध होने पर टुकड़ों या कलमों को मार्च से लेकर अक्तूबर तक रोपा जा सकता है कलमे जड़ों के पास से या पौधों के उपरी भाग से काटी जाती है मेहता १९५९ के अनुसार एक हे.भूमि में लगाने के लिए १.५ मी.लम्बी ४-५ हजार कलमे पर्याप्त होती है कलमे हमेशा मादा पौधे से काटनी चाहिए अन्यथा पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा परिक्षण से पता चला है कि कलमों वाली फसल से अधिक पैदावार मिलती है एकलिंगी पौधा होने के कारण परवल में नर और मादा फुल अलग-अलग पौधों पर पाए जाते है कलमों कि रोपाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि १५-२० मादा पौधे के बिच कम से कम एक नर पौधा अवश्य होना चाहिए इसके लिए फुल आते ही नर व मादा पौधों को चिन्हित कर देना चाहिए जिससे कलमे काटने में सुविधा रहे मादा फुल नर फुल कि तुलना में छोटे होते है और निचला भाग फुला हुआ होता है जो रोएंदार और सफ़ेद रंग का होता है जबकि नर फुल का निचला भाग लम्बा होता है मादा फुल के नीचे फुले हुए भाग में गर्भाशय होता है ।
कलमों कि रोपाई भली-भांति तैयार किए गए और खाद भरे हुए गड्डों में करनी चाहिए कलमों के रोपाई एक दुसरे से १.५ मीटर कि दुरी पर कि जाती है कलम के निचले भाग में ८.७५ से.मी.तक पिली मिटटी लपेटी जाती है और दोनों और ३०-३० से.मी.तना बाहर निकला रहता है इसी मध्य भाग से कलमों कि जड़ो से २५ से.मी.गहरा दबा देते है ताकि दोनों सिरे बाहर निकले रहें उचित सहारा देने के लिए कलमों को वृक्ष , पान कि बेलों या दीवार के साथ लगाया जाता है ।
आर्गनिक खाद :-
परवल कि अच्छी पैदावार लेने के लिए भूमि में बुवाई या रोपाई से पहले गोबर कि सड़ी हुई खाद २०-२५ टन और आर्गनिक खाद २ बैग खाद भू-पावर वजन ५० किल ग्राम , २ बैग माइक्रो फर्टीसिटीकम्पोस्ट वजन ४० किलो ग्राम , २ बैग माइक्रो भू--पावर वजन १० किलो ग्राम , २ बैग सुपर गोल्ड कैल्सीफर्ट वजन १० कलो ग्राम , २ बैग माइक्रो नीम वजन २० किलो ग्राम और ५० किलो अरंडी कि खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर मिश्रण तैयार कर एक हेक्टेयर भूमि में समान मात्रा में बिखेर कर जुताई कर बुवाई करें ।
जब फसल २५-३० दिन कि हो जाए तब २ बैग सुपर गोल्ड मैग्नीशियम वजन १ किलो ग्राम और माइक्रो झाइम ५०० मि. ली. २०० लीटर पानी में अच्छी तरह मिलाकर तर-बतर कर छिडकाव करें दूसरा -तीसरा छिडकाव हर १५ -२० दिन के अंतर से करना चाहिए ।
सिचाई :-
परवल कि सिचाई कलमों के रोपने के समय से विशेष रूप से निर्भर करती है फ़रवरी -मार्च और सितम्बर माह में रोपी गई कलमों को मानसून आने से पहले और उनके समाप्त होने के उपरांत सिचाई कि आवश्यकता होती है जबकि वर्षा कालीन फसल को सिचाई करने कि आवश्यकता नहीं होती फ़रवरी -मार्च वाली फसलों में हर पांचवे दिन सिचाई करते रहना चाहिए फुल और फल आने के समय परवल कि फसल को अधिक नमी कि आवश्यकता होती है अत: आवश्यकता अनुसार सिचाई करते रहें ।
खरपतवार नियंत्रण :-
ठण्ड समाप्त होने के समय पौधों कि जड़ों के समीप कि भूमि में निराई-गुड़ाई करके मिटटी पोली कर देनी चाहिए चूँकि लताएँ ऊपर कि ओर फैलती जाती है इसलिए खरपतवार अधिक प्रभावशाली नहीं होते है ।
कीट नियंत्रण :-
परवल कि फसल को बहुत से कीड़े मकोड़े सताते है किन्तु फल कि मक्खी और और फली भ्रंग विशेष रूप से हानी पहुंचाते है ।
फल कि मक्खी :-
मक्खी फलों में छिद्र करती है और उनमे अंडे देती है जिसके कारण फल सड़ जाते है कभी-कभी यह मक्खी फूलों को भी हानी पहुंचाती है ।
रोकथाम :-
इनको रोकने के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर २५० मि.ली.प्रति पम्प के हिसाब से तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें ।
फली भ्रंग :-
यह धूसर रंग का गुबरैला होता है जो पत्तियों में छेद करके उन्हें हानी पहुंचता है ।
रोकथाम :-
इनको रोकने के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर २५० मि. ली. प्रति पम्प के हिसाब से तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें ।
रोग नियंत्रण :-
परवल में विशेष रूप से चूर्णी फफूंदी नामक रोग अधिक लगता है :-
चूर्णी फफूंदी :-
यह रोग एक प्रकार कि फफूंदी के कारण लगता है जिसके कारण पत्तियों और तनों पर आते के समान फफूंद जम जाती है और पत्तियां पिली व मुरझाकर मर जाती है ।
रोकथाम :-
इनको रोकने के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर २५० मि. ली. प्रति पम्प के हिसाब से तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें ।
कटाई /तुड़ाई :-
परवल कि अधिक पैदावार के लिए इसकी बेलों कि छटाई करनी पड़ती है अब हमारे सामने यह प्रश्न खड़ा है बेलों कि छटाई कब कि जाए ? इसकी छटाई करने का उपयुक्त समय पहले साल कि फसल लेकर नवम्बर -दिसंबर में २०-३० से.मी.कि बेल छोड़कर सारी बेल काट देनी चाहिए क्योंकि इस समय पौधा सुषुप्त अवस्था में रहता है तने के पास ३० से.मी.स्थान छोड़कर फावड़े से पुरे खेत कि गुड़ाई कर लेनी चाहिए इस बेलोंका फुटाव कम हो जाता है जिनसे लताएं निकलती है और उनमे मार्च में फल लगने शुरू हो जाते है ।
उपज :-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें