शनिवार, 23 जुलाई 2022

मिट्टी से गायब हो रहा पोटाश

मिट्टी से गायब हो रहा पोटाश

मिट्टी में फसल उत्पादन के लिए नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की भूमिका अहम रहती है। गोवर आदि जैविक खाद की जगह रासायनिक खेती को बढ़ावा मिलने से पोटाश तत्व की कमी हो गई है। रासायनिक खादों में पोटाश की खाद ज्यादा महंगी रहने से किसान इसका उपयोग अपेक्षाकृत कम कर रहे हैं जिससे फसल उत्पादन के साथ खेतों से पोटाश गायब हो रहा है। लगातार फसल उत्पादन से पोटाश तत्व की मात्रा घटने के साथ पुनः पूर्ति के उपाय नहीं होने से मिट्टी से पोटाश घट रहा है।

मिट्टी उपजाऊ के ये हैं मानक

मिट्टी के उपजाऊ के लिए फास्फोरस की मात्रा 10 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर से कम होने पर लॉ श्रेणी और 10 से 20 किग्रा तक मध्य तथा 20 से ज्यादा हाई आंकी जाती है। नाईट्रोजन प्रति हैक्टेयर 250 किग्रा से कम रहने पर लॉ और 250 से 400 के बीच मध्यम आंकी जाती है। इसी तरह पोटाश की मात्रा नाईट्रोजन के समान निर्धारित है, लेकिन मिट्टी परीक्षण में यह प्रति हैक्टेयर 150 से 200 किग्रा के बीच आ रही है। प्रयोगशाला में हो रहे मिट्टी परीक्षण में उक्त तीनों पोषक तत्वों के अलावा पीएच में अम्लीय और क्षरीय सहित ईसी में घुलनशील लवणों की मात्रा परखी जाती है जो फसल उत्पादन में अहम रहते हैं।

फसल उत्पादन पर प्रभाव

पोटाश के अभाव में पौधों में दाने की चमक फीकी रहना, कीट प्रकोप बढ़ना, पौधों के तनों में मजबूती नहीं रहती। फलस्वरूप पोटाश की कमी से फसल उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। जबकि नाईट्रोजन से पत्तियां हरी और पौधों में वृद्घि होती है जबकि फास्फोरस से पौधों की जड़ों में वृद्घित होती है। वर्तमान में किसान सबसे ज्यादा यूरिया व डीएपी का उपयोग कर रहे हैं। यूरिया में नाईट्रोजन और डीएपी में 18ः46 के अनुपात में नाईट्रोजन रहता है, लेकिन पोटाश की पूर्ति नहीं हो पाती।

सूक्ष्म तत्वों की नहीं हो रही जांच

जिला मुख्यालय की प्रयोगशाला में मिट्टी परीक्षण के अन्य सूक्ष्म तत्वों का परीक्षण नहीं हो पा रहा। माईक्रो नयूटन एनालाईसिस प्रयोगशााला ग्वालियर संभाग मुख्यालय पर है। इस मिट्टी परीक्षण में जिंक, कॉपर, मैग्नीज और आयरन की जांच होती है। संभावना जताई जा रही है कि जिले की मृदा में उक्त सूक्ष्म तत्व भी घट रहे हैं। उक्त मिट्टी परीक्षण के लिए करीब 15 लाख की मशीन की जरूरत होती है जो सिर्फ ग्वालियर में ही है। ज्ञात रहे मिट्टी परीक्षण के लिए किसानों को नाम मात्रा का शुल्क अदा करना पड़ता है। अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के किसानों से प्रति नमूला 3 रुपए और सामान्य सहित ओबीसी वर्ग के किसानों के लिए 5 रुपए निर्धारित है।

मिट्टी परीक्षण के तरीके

परीक्षण हेतु खेत से मिट्टी घासफूस साफ की जाती है। खेत में 5-6 स्थानों से वी आकार के गड्ढे से परीक्षण के लिए 500 ग्राम मिट्टी लेते हैं। परीक्षण के लिए मिट्टी खेत की मेढ़ और छायादार पेड़ के नीचे से नहीं ली जाती। प्रयोगशाला में रासायनिक और मशीनों से परीक्षण कर मिट्टी में पोषक तत्वों की जांच की जाती है।

क्या कहते हैं अधिकारी

प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए आ रहे मिट्टी के नमूनों की जांच करने पर अधिकतर पोटाश की कमी पाई जा रही है। जांच के आंकड़ों के आधार पर मृदा में 90 फीसदी तक पोटाश की कमी आ रही है।राशायनिक के अलावा गोवर खाद, केंचुआ आदि जैविक खादों के उपयोग से पोटाश की कमी पूरी हो सकती है।

भगवतीशरण जोशी, प्रयोगशाला प्रभारी, मिट्टी परीक्षण प्रयोग शाला नानाखेड़ी कृषि उपज मंडी गुना

पोटाश की पूर्ति के लिए एनपीके खाद करीब 4 हजार टन किसानांें को उपलब्ध करा रहे हैं। मिट्टी परीक्षण कराकर किसानों को पोषक तत्वों की पूर्ति की सलाह दी जा रही है ताकि किसान अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकें

ट्राइकोग्रामा कार्ड

ट्राइकोग्रामा कार्ड
ट्राइकोग्रामा - एक अंडा-परजीवी मित्र कीट
जैविक-कीट नियंत्रण प्रणाली एकीकृत कीट प्रबंधन के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है और इसका उपयोग प्रभावी है। हमारा मित्र कीट 'ट्राइकोग्रामा चिलोनीस' है, जो कई कीटों पर रहता है। यह प्रजाति ट्राइकोग्रामा पर विभिन्न प्रजातियों के 3 अंडों पर रहती है। जीवन चक्र: - ट्राइकोग्रामा के अंडे की अवस्था 16-24 घंटे की होती है और उसके बाद उसमें से सुंडी निकलती है। सुंडी की अवस्था 2- 3 दिन की होती है। यह सुंडी, किट के अंडे पर जीवित रहती है। इसलिए, उसमें से कीट निर्मिति नहीं होती है। फिर सूंडी कोषावस्था में चली जाती है। कोषावस्था 2-3 दिन की होती हैं। 7 वें या 8 वें दिन, ट्राइकोग्रामा वयस्क किट के अंडे में से बाहर निकलता है। कोषावस्था से बाहर निकले हुए वयस्क ट्राइकोग्रामा 24-48 घंटे तक जीवित रहता है। वयस्क ट्राइकोग्रामा आगे 2 से 3 दिनों के लिए खेत में घूमकर सुंडीवर्गीय कीट के अंडों को ढूंढ़कर उसमें अपने अंडे देता है। इस तरह, ट्राइकोग्रामा कीट का जीवन चक्र पूरा हो जाता है। ट्राइकोग्रामा कीट नियंत्रण पद्धति ट्राइकोग्रामा यह मित्र कीटों की प्रयोगशाला में उत्पादन लिया जाता है। प्रयोगशाला में, धान में पाए जाने वाले पतंगा के अंडों पर कृतिम तरीके से ट्राइकोग्रामा की मादा से अंडे डाल कर इस प्रकार तैयार किये गए कार्ड को किसानों को दिए जाते हैं। इस तरह के कार्ड पर लगभग 18 से 20 हजार अंडे होते हैं। इस कार्ड की पट्टियां बनाकर खेत में कैनोपी में फसल के पत्तों पर स्टेपलर या धागे द्वारा बांधकर लगाया जा सकता है। यह परजीवी ट्राइकोग्रामा को खेत में छोड़ा जाता है, तो मादा अंडे 5 मीटर व्यास वाले क्षेत्र में कीट ने डाले हुए अंडे को ढूंढकर उसके ऊपर मादा किट अंडे देती है। एक मादा हानिकारक कीटों के अंडों ढूंढकर 1 अंडे में 2 से 6 अंडे देती है। ट्रायकोग्रामा की अंडे फूटने के बाद सुंडी अवस्था हानिकारक कीट के अंडे के अंदर खाते हैं और फिर कोषावस्था में चले जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में हानिकारक कीट के अंडे का जीवित भाग समाप्त हो जाता है और जीवित कीट अंडे से बाहर नहीं निकलता है। इस तरह से, ट्राइकोग्रामा हमारे दोस्त हैं, जो दुश्मन कीट को नष्ट कर देता है और हमें नुकसान से बचाता है। संदर्भ - एगोस्टार एग्रोनॉमी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगती है, तो फोटो के नीचे पीले अंगूठे के निशान पर क्लिक करें और नीचे दिए गए विकल्प के माध्यम से अपने सभी कृषक मित्रों के साथ साझा करें
स्रोत_AgroStar Krishi Gyaan
Pune, Maharashtra

सफ़ेद गिडार / वाइट ग्रब

सफ़ेद गिडार / वाइट ग्रब कोलियोपटेरा गण का कीट है ,इसका वैज्ञानिक नाम होलोट्रोचिआ सिराटा, होलोट्रोचिआ कोनसांगिनी है .यह मिट्टी में रहने वाला बहुभक्षी कीट है जो मिट्टी के कार्बनिक पदार्थो को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करता है .यह अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग नामो से जाना जाता है, जैसे सफ़ेद गिडार, गोबर कीड़ा ,गोबरिया कीड़ा आदि  वैज्ञानिक रूप से इसे वाइट ग्रब या सफ़ेद लट कहते है|

 आमतौर पर किसान  गोबर अथवा कम्पोस्ट की खाद अन्य स्थानों से  खेत  में लाते है इस प्रकार कच्ची खाद में / बिना अच्छी तरह सड़ी हुई खाद में ये कीट आमतौर पर रहता  है   |

जीवन चक्र

वाइट ग्रब मई के मध्य या बाद में अच्छी बारिश के बाद शाम के समय (शाम  7 बजे से रात 10 बजे तक) मिट्टी से निकलता  हैं । वाइट ग्रब की होलोट्रोचिआ कोनसांगिनी प्रजाति 76-96 दिनों में अपने जीवन चक्र को पूरा  करती है जबकि होलोट्रोचिआ सिराटा प्रजाति का जीवन चक्र 141 से 228 दिन में पूर्ण होता है

अंडे : अंडे की अवधि 8-10 दिन होती है अंडो का रंग सफेद एवं आकर गोलापन लिए हुए है 
लार्वा : लार्वा की अवधि 56-70 दिन होती है  युवा ग्रब  मांसल, पारदर्शी एवं सफेद पीले रंग के, एव अंग्रेजी के अक्षर  ‘सी’ के आकार के होते हैं |
प्यूपा : प्यूपा का जीवन काल 12-16  दिन का होता है |
वयस्क : वयस्क का रंग  गहरा  भूरा होता है  । वाइट ग्रब का  वयस्क  18-20 मिमी लम्बा  और 7-9 मिमी चौडा  होता  हैं,  बारिश की शुरुआत के बाद 3-4 दिनों के भीतर वयस्क मिट्टी से बाहर निकलता  हैं।

वाइट ग्रब से होने वाले नुकसान –

वाइट ग्रब का प्रकोप मुख्य रूप से किसानो द्वारा पौधे को  गोबर की खाद/कम्पोस्ट देने से होता है
इसका लार्वा पौधे की जड़ो को नुकसान पहुँचता है, जिसके कारणवश पौधा मुर्झा कर कुछ दिनों बाद पौधा मर जाता है
इसका वयस्क रात में मिटटी से बाहर निकलता है तथा पौधे की पत्तियों को खाता है
नियंत्रण

लार्वा /ग्रब का नियंत्रण

गर्मियों में जुताई करे |
पौध रोपण के पूर्व एवं बाद में सड़ी हुई गोबर की खाद का ही प्रयोग करे |
जमीन में खाद देते समय खाद के साथ कीटनाशक डस्ट का उपयोग करे |
शमशीर की ड्रेंचिंग (तने के चारो तरफ 18 इंच की गोलाई में) मिट्टी पर 1-1.5 मिली लीटर / लीटर पानी में डालकर करे |
भू संजीवनी का ड्रिनचिंग करें।
वयस्क नियंत्रण

पौधे एवं खेत के आस पास की भूमि को साफ़ सुथरा रखे ।
मानसून की पहली बारिश के बाद शाम 7 बजे से रात 10 के बीच एक लाइट ट्रैप / एकड़ रखें |
शमशीर 1 से 2 मिलीलीटर / प्रति लीटर पानी में घोलकर इसका छिड़काव करें, छिड़काव का समय – 4:00 से 6:00 |
भू संजीवनी का 500 ग्राम /200 लीटर पानी में वर्ष में 3 बार ड्रिनचिंग करें।(भू संजीवनी का प्रयोग करने से 7 दिन पहले व 7 दिन बाद किसी भी तरह की खाद, या कीटनाशक का प्रयोग वर्जित है)

मंगलवार, 19 जुलाई 2022

गन्ने की फसल में होने वाले रोग और निदान

गन्ने की फसल में होने वाले रोग और निदान

हमारे देश में गन्ना प्रमुख रूप से नकदी फसल के रूप में उगाया जाता है, जिसकी खेती प्रति वर्ष लगभग 30 लाख हेक्टर भूमि में की जाती है, इस देश में औसत उपज 65.4 टन प्रति हेक्टर है, जो की काफी कम है, यहाँ पर मुख्य रूप से गन्ना द्वारा ही चीनी व गुड बनाया जाता है Iउत्तर प्रदेश में और ख़ास तौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिकांश खेती गन्ने की ही होती है। ऐसे में किसानों के लिए ये जानना बेहद ज़रूरी है कि गन्ने की फसल को कौन से रोग बर्बाद कर सकते हैं और उनके रोकथाम के लिए किसान क्या कर सकते हैं! 
 
प्रमुख कीट/रोग  

1. अंकुर बेधक
 
उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में अंकुरण से चार माह तक इसका प्रकोप रहता है। इसके लारवा वृद्धि बिन्दुओं को बेधकर मृत केन्द्र बनाते है जिसमें से सिरके जैसी बदबू आती है।
 रोकथाम

• अंकुर बेधक के प्रकोप से ग्रस्त गन्नों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
• एकीकृत नाद्गाीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए अथवा
• मेटाराइजियम एनिसोप्ली की 2.5 किग्रा0 मात्रा प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
• क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा
• कार्बोफ्‌यूरान 3 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए अथवा
• फिप्रोनिल 0.3 प्रतिद्गात जी0आर0 के 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से अथवा
फोरेट 10 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
 
2. अगोले की सड़न
(जुलाई से सितम्बर तक) 
ऊपर की नयी पत्तियॉ प्रारम्भ में हल्की पीली अथवा सफेद पड़ जाती है जो बाद में सड़ कर नीचे गिर जाती है। यह रोग वर्षाकाल में अधिक लगता है तथा गन्ने की बढवार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
रोकथाम

• रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गॉठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए।
• स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार(54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिद्गात आर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो।
• पौधशालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिद्गिचत कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके।
ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 अध सडे गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए अथवा
स्यूडोमोनास फ्‌लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा0 अध सडे़ गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
 
3. उकठा रोग
(अक्टूबर से फसल के अन्त तक) 
प्रभावित थान के गन्नों की पोरियों का रंग हल्का पीला हो जाता है। गन्ने का गूदा सूख जाता है तथा रंग भूरा हो जाता है। 
 रोकथाम 

• रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गॉठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए।
• स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार (54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिद्गात आर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो।
• पौधद्गाालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिद्गिचत कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके।
• ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए अथवा
स्यूडोमोनास फ्‌लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
 
4. कडुआ रोग (चाबुक कडुआ)
(अप्रैल से मई तक)
रोग ग्रस्त गन्ने की पत्तियॉ पतली, नुकीली तथा पोरियॉ लम्बी हो जाती है। प्रभावित गन्नों में छोटे या लम्बे काले कोडे निकल आते है जिन पर कवक के असंखय वीजाणु स्थिति होते है। इस रोग का प्रभाव पेडी गन्ने में अत्यधिक होता है।
रोकथाम 

• रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए।
• बोने के लिए बीज गन्ने का चयन स्वस्थ एवं रोग रहित खेतों से करना चाहिए ताकि अगली फसल को रोग मुक्त रखा जा सके।
• रोगी थान का समूल उखाड कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि स्वस्थ गन्नों में दुबारा संक्रमण न हो सके।
• प्रभावित खेत में कम से कम एक वर्ष तक गन्ना नही बोना चाहिए।
समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिद्गिचत की जानी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में फसल में पानी का जमाव न हो।
• रोग से प्रभावित खेत में कटाई पद्गचात उसमें पत्तियों एवं ठूठे को पूरी तरह जलाकर नष्ट कर देना चाहिए तथा खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए।
बोने से पूर्व गन्ने के 50 कुन्तल बीज सेट को एम0ई0एम0सी0 6 प्रतिद्गात 830 ग्राम प्रति हे0 प्रति की दर से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए।
 
5. काला चिटका(ब्लैक बग)
(अप्रैल से जून तक)
यह कीट गन्ने की पेडी पर अधिक सक्रिय रहता है तथा पत्तियों का रस चूसता है जिससे फसल दूर से पीली दिखाई देती है।
 रोकथाम  

• वर्टिसिलियम लैकानी 1.15 प्रतिद्गात डब्लू0पी0 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 400-500 ली0 पानी में घोलकर आवद्गयकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल छिड़काव करना चाहिए।
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
• क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
क्यूनालफास 25 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए 6. चोटी बेधक (टाप सूट बोरर)
(मार्च से सितम्बर)
इसका प्रकोप गन्ने की फसल में बृद्धि की सभी अवस्थाओं में होता है प्रभावित गन्ने में पत्तियों सूखकर डेड हार्ट बना देती है तथा गन्ने की मघ्य सिरा में एक लाल धारी सी पड़ जाती है। विकसित गन्ने में झाड़ीनुमा सिरा (बन्ची टाप) बन जाती है।
 रोकथाम 
• चोटी बेधक के प्रकोप से ग्रस्त गन्ने को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
• मार्च से जुलाई तक 15 दिन के अन्तराल पर ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए अथवा
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
• क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
• कार्बोफ्‌यूरान 3 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए अथवा 
फोरेट 10 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
7. जड़ बेधक (रूट बोरर)
इस कीट की सूड़ी का प्रकोप छोटे बड़े दोनों ही पौधो ंपर पाया जाता है। सूड़ी जमीन से लगे हुए गन्ने के भाग में छिन्द्र बनाकर घुस जाती है तथा मृतसार (डेड हार्ट) बनाती है इन मृतसारों से कोई दुर्गन्ध नहीं निकलती है तथा इसे आसानी से निकाला नही जा सकता है।
रोकथाम  
• कीट के अण्ड समूहों को इकट्‌ठा करके तथा प्रभावित तनों को जमीन से काट कर नष्ट कर देना चाहिए।
• तलहटी वाले खेतों में पेडी की फसल नहीं लेनी चाहिए।
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
• इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 एस0एल0 350 मिली0 अथवा 
• क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 2.5 ली प्रति हे0 अथवा
फेनवलरेट 0.4 प्रतिद्गात धूल 25 किग्रा0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
8. तना बेधक (स्टेम बोरर)
कीट का प्रकोप वर्षा काल के बाद जल भराव की स्थिति में अधिक पाया जाता है। यह कीट तनों में छेद करके इसके अन्दर प्रवेद्गा कर जाता है तथा पोरी के अन्दर का गूदा खा जाता है जिसके कारण उपज में कमी आ जाती है।
रोकथाम 
• गन्ने की सूखी पत्तियों को काट कर अलग कर देना चाहिए।
• एकीकृत नाद्गाीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 की दर से 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल प्रयोग करना चाहिए अथवा
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
• मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिद्गात एस0एल0 2 ली0 प्रति हे0800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा
• क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
• कार्बोफ्‌यूरान 3 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए अथवा 
फोरेट 10 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
9. दीमक
बोये गये गन्ने के दोनो सिरों से घुस कर अन्दर का मुलायम भाग खाकर उसमें मिट्‌टी भर देता है। ग्रसित पौधों की बाहरी पत्तियॉ पहले सूखती है तथा बाद में पूरा गन्ना नष्ट हो जाता है। ऐसे पौधो से दुर्गन्ध नही आती तथा पौधा आसानी से खिचने पर मिट्‌टी से उखड आता है
रोकथाम 
• बुवाई से पूर्व खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए।
• खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• फसलों के अवद्गोषों को नष्ट कर देना चाहिए।
• नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हे0 की दर से बुवाई से पूर्व मिलाने से खेत में दीमक के प्रकोप में कमी आती है।
• ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिद्गात बायोपेस्टीसाइड 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 60-75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छिटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक का नियंत्रण हो जाता है।
• कूड़ों में फेनवलरेट 0.4 प्रतिद्गात धूल 25 किग्रा0 की दर से बुरकाव करना चाहिए।
• खड़ी फसल में प्रकोप की स्थिति में निम्नलिखित कीटनाद्गाकों में से किसी एक का सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।
इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 एस0एल0 350 मिली0 अथवा
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 2.5 ली प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
 10. पत्ती की लाल धारी
(जून से सितम्बर तक)
गन्ने की पत्तियों पर लाल रंग की धारियॉ निचली सतह पर पड़ जाती है जिसके अत्यधिक प्रकोप की दद्गाा में पूरी पत्ती लाल हो जाती है। पत्तियों का क्लोरोफिल समाप्त हो जाता है तथा बढवार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
रोकथाम 
• रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गॉठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए।
• स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार (54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिद्गात आर्द्रता पर) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो।
• पौधद्गाालाओं के लिए खेत का चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिद्गिचत कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके।
• ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए अथवा
स्यूडोमोनास फ्‌लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा0 अध सडे़ गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
11. पायरिला
(जुलाई से सितम्बर तक)
कीट का सिरा लम्बा व चोंचनुमा होता है। ये वयस्क गन्ने की पत्ती से रस चूसकर क्षति पहुॅचाते है।
रोकथाम 
• अण्ड समूहों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
• फसल वातावरण में पायरिला कीट के परजीवी एपीरिकेनिया मेलोनोल्यूका को संरक्षण प्रदान करना चाहिए। परजीवी कीट की पर्याप्त उपस्थित में कीट की स्वतः रोकथाम हो जाती है।
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाद्गाको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
• क्यूनालफास 25 प्रतिद्गात ई0सी0 2 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
डाइक्लोरोवास 76 प्रतिद्गात ई0सी0 375 मिली0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए
12. पोरी बेधक
(इन्टर नोड बोरर)
(जुलाई से अक्टूबर तक)
इसके लारवा गन्ने के कोमल व मुलायम भाग को क्षतिग्रस्त कर पोरी में बेधक करते हुए गन्ने के ऊपरी भाग में पहुॅच जाते है।
रोकथाम 
• गन्ने की सूखी पत्तियों को काट कर अलग कर देना चाहिए।
• नाइट्रोजन का अधिक उपयोग नही करना चाहिए।
• खेत में समुचित जल प्रबन्ध करना चाहिए।
एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन के अन्तर्गत ट्राइकोग्रामा कीलोनिस के 10 कार्ड प्रति हे0 15 दिन के अन्तराल पर सायंकाल में प्रयोग करना चाहिए अथवा 
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाशको में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
• मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिद्गात एस0एल0 2 ली0 प्रति हे0800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
• क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए अथवा 
• कार्बोफ्‌यूरान 3 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए अथवा 
फोरेट 10 प्रतिद्गात सी0जी0 30 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुरकाव करना चाहिए ।
13. लाल सड़न( काना रोग)
(जुलाई से फसल के अन्त तक)
ऊपर से तीसरी तथा चौथी पत्ती सूखने लगती है साथ ही पत्ती के बीच की मोटी नस में लाल या भूरे रंग के धब्बे पडने लगते है। गन्ने को बीच की चीरने पर गूदा मटमैला लाल दिखाई पड़ता है। जिसमें से सिरके जैसी गंध आती हैं। गन्ने की पिथ में सफेद अथवा भूरी रंग की फफूॅदी भी विकसित हो जाती हैं।
रोकथाम 
• रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि किसी बीज गन्ने के कटे हुए सिरे अथवा गॉठों पर लालिमा दिखे तो ऐसे सेट का प्रयोग नही करना चाहिए।
• स्वस्थ बीज गन्ना की बुवाई करना चाहिए। जिसका बीज आर्द्र गर्म वायु उपचार(54 से0 ताप पर 2.5 घण्टों तक 99 प्रतिशत आर्द्रता पर ) विधि से पूर्वोपचारित किया गया हो।
• पौधशालाओं के लिए खेत के चयन में समुचित जल निकास की व्यवस्था सुनिद्गिचत कर लेनी चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में पानी का जमाव न हो सके।
ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए अथवा
स्यूडोमोनास फ्‌लोरिसेन्स 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 100 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए ।
14. सफेद गिडार वयस्क(गुबरैले)
कीट मानसून की पहली वर्षा के बाद से पत्तियों को खाकर क्षति पहुॅचाते है। कीट के गिडार सफेद मटमैले रंग की होते है जो पौधे की जड़ को खाकर क्षति पहुॅचाते है। फलस्वरूप गन्ने का थान जड़ से सूखकर गिर जाता है।
रोकथाम 
• खेत की गहरी जुताई करके फसलों एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।
• बुवाई समय से तथा पौधों की वांछित दूरी बनाये रखी जानी चाहिए।
• भूमिशोधन ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 प्रतिशत 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 60-75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर 8-10 दिन रखने के उपरान्त प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए।
• खड़ी फसल में कीट की रोकथाम हेतु मेटाराइजियम एनिसोप्ली 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से 400-500 ली0 पानी में घोलकर सायंकाल छिडकाव करना चाहिए जिसे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है।
• रसायनिक नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाशको में से किसी एक का प्रयोग वयस्क कीट के नियंत्रण हेतु करना चाहिए।
• क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिद्गात ई0सी0 1.5 ली0 प्रति हे0 800-1000 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए । 
• कार्बोफ्‌यूरान 3 प्रतिशत सी0जी0 25-30 किग्रा0 प्रति हे0 अथवा फेनवलरेट 10 प्रतिद्गात सी0जी0 25 किग्रा0 की दर से बुरकाव करना चाहिए।

सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण

सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण 

खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रमुख रूप से फसल में निंदाई की अनुशंसा की जाती है फसल में दो बार बोनी के 20 दिन बाद एवं 40 दिन बाद निंदाई करनी चाहिए

रासायनिक नियंत्रण के लिए बुआई के 10-12 दिन बाद चौड़ी पत्ते बाले खरपतवार के लिए क्लोरीम्यूरॉन इथाइल 25 WP 36 ग्राम प्रति हेक्टेयर या वेंटाझोन 48 SL 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करे

बुआई के 15-20 दिन बाद सभी प्रकार के खरपतवार के लिए इमिझाथापायर 10 S.L.,1 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा इमिझाथापायर 70% WG + सर्फेक्टेंट 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करे सकरी पत्ती वाले खरपतवार के लिए क्विजालोफॉप इथाईल 5 EC 1 लीटर प्रति हेक्टेयर, क्विजालोफॉप-पी-इथाईल,10 EC 375-450 मि. ली. प्रति हेक्टेयर, फेनॉक्सीफॉप-पी-इथाईल 9 EC 1 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा प्रोपाक्वीजाफॉप 10 EC 0.5-0.75 लीटर प्रति हेक्टेयर प्रति हेक्टेयर इनमें से किसी एक खरपतवार नाशी का आवश्यकतानुसार प्रयोग करें

सोमवार, 11 जुलाई 2022

बैंगन की जीवाणु उखटा रोग व नियंत्रण

जीवाणु उखटा रोग (Bacterial Wilt Disease)

यह रोग स्यूडोमोनास सोलेनीसेरम नामक जीवाणु से होता है. फसल पर इस रोग का प्रकोप आने पर पौधों की पत्तियों का मुरझाना, पीलापन तथा पौधा अल्प विकसित होना और बाद में सम्पूर्ण पौधा मुरझा जाता है. इस रोग के कारण पहले पौधे की पत्तियाँ गिरती है और पौधे का संवहन तंत्र भूरा हो जाता है. इस रोग का मुख्य लक्षण शुरुआती अवस्था में पौधा दोपहर के समय मुरझा जाता है और रात में सही हो जाता है लेकिन बाद में समाप्त हो जाता है

जीवाणु उखटा रोग से रोकथाम (Prevention of Bacterial wilt disease)

  • रोग ग्रसित पौधें को खेत से उखाड़ कर जला दें.
  • गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें.
  • खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करें
  • बीज को कार्बेन्डेजिम 2.5 ग्रा./कि.ग्रा. की दर से उपचारित करें
  • फसल चक्र अपनायें।
  • रोग प्रतिरोधी प्रजातियां लगाएं.
  • क्लोरोथलोनिल 75 डबल्यूपी 2 ग्राम या कसूगामायसिन 5 + कॉपर ओक्सिक्लोराइड़ 45 डबल्यूपी 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें.